BlogHide Resteemsshridhi (47)in poem • 3 years ago'जो प्यार तन में जगता है, तन से उपजता है, वही देह पाकर.............'जो प्यार तन में जगता है, तन से उपजता है, वही देह पाकर दुनिया में जी भी आता हैshridhi (47)in poem • 3 years ago'व्यक्ति में इतनी ताकत हमेशा होनी चाहिए कि अपने दुख, अपने ............'व्यक्ति में इतनी ताकत हमेशा होनी चाहिए कि अपने दुख, अपने संघर्षो से अकेले जूझ सके|shridhi (47)in poem • 3 years agoमैं दो दिन दिन की जिंदगी जी सकता हूँ एक दिन मैं तुम्हारे पास रहूँगा दूसरे..........मैंदोदिन दिन की जिंदगी जी सकता हूँ एक दिन मैं तुम्हारे पास रहूँगा दूसरे दिन तुम मेरे पास रहना विनोद कुमार शुक्ल'."shridhi (47)in poem • 3 years agoरात को रात कह दिया मैंने मैं सुनते ही बौखला गई..........रात को रात कह दिया मैंने मैं सुनते ही बौखला गई दुनिया हफ़ीज़ मेरठी'."shridhi (47)in poem • 3 years ago'कोई विकल्प नहीं है तुम्हारे अपनेपन से भरे स्पर्श का| लेकिन खुले में धीमी .........'कोई विकल्प नहीं है तुम्हारे अपनेपन से भरे स्पर्श का| लेकिन खुले में धीमी हवा को छूते हुए बीत ही जाती हैं बसंत की शामें|shridhi (47)in poem • 3 years ago'मैंने प्रेमियों की आँखों में प्रेम नहीं ज़िद देखी प्रेम पाने को............'मैंने प्रेमियों की आँखों में प्रेम नहीं ज़िद देखी प्रेम पाने को लौटती रही ख़ुद में और एक दिन ख़ुद की होshridhi (47)in poem • 3 years ago'वाणी के बजाय कार्य से दिए गए उदाहरण कहीं ज्यादा ...........'वाणी के बजाय कार्य से दिए गए उदाहरण कहीं ज्यादा प्रभावी होते हैं|shridhi (47)in poem • 3 years agoवो झूठ बोल रहा था बड़े सलीक़े से मैं ए'तिबार न करता तो...............वो झूठ बोल रहा था बड़े सलीक़े से मैं ए'तिबार न करता तो और क्या करताshridhi (47)in poem • 3 years ago'दो प्यार करने वाले हदयों के बीच में स्वर्गीय ज्योति का.............'दो प्यार करने वाले हदयों के बीच में स्वर्गीय ज्योति का निवास होता है|shridhi (47)in poem • 3 years ago'मैं केवल इसलिए पुस्तकों के पृष्ठ नहीं मोडता क्योंकि तुम्हें लगता है ऐसा करना पेड़ ......'मैं केवल इसलिए पुस्तकों के पृष्ठ नहीं मोडता क्योंकि तुम्हें लगता है ऐसा करना पेड़ के मन पर आघात होता है तुम्हारे भीतर करुणा की कौन नदी बहती है श्यामली जिसमें डूबकर मैं भी कोमलतम होते जा रहा हूँshridhi (47)in poem • 3 years ago'"आप जो हो सकते थे, उसके लिए कभी देर.............'"आप जो हो सकते थे, उसके लिए कभी देर नहीं हुई|shridhi (47)in poem • 3 years ago'स्वयं पथ- पथ-भटका हुआ खोया हुआ शिशु जुगनुओं को पकड़ने को दौड़ता............'स्वयं पथ- पथ-भटका हुआ खोया हुआ शिशु जुगनुओं को पकड़ने को दौड़ता है किलंकता है: 'पा गया! मैं पा गया!'shridhi (47)in poem • 3 years agoपतानहीं कितना अंधकार था मुझमें पता मैं सारी उम्र चमकने......पतानहीं कितना अंधकार था मुझमें पता मैं सारी उम्र चमकने की कोशिश में बीत गया धूमिल'."shridhi (47)in poem • 3 years agoपृथ्वी की गोलाई समेटे नथनी झूलती है भविष्य-सा कई जंगल हैं सीने में मगर ढूँढ़़ती............पृथ्वी की गोलाई समेटे नथनी झूलती है भविष्य-सा कई जंगल हैं सीने में मगर ढूँढ़़ती है गीत M पूरी शिवालिक शुंखला का नाम है औरत औरत पहाड़ का नाम हैshridhi (47)in poem • 3 years agoमेरी पुरानी प्रेयसी तुम जो कई वर्षों के पर्दे लाँघकर एक महीन याद की तरह आई हो हरे पीले ............मेरी पुरानी प्रेयसी तुम जो कई वर्षों के पर्दे लाँघकर एक महीन याद की तरह आई हो हरे पीले लाल पत्तों के परिधान में अपनी नीली आभा प्रकट करती हुई मुझे माफ़ करना कि मेरा दिल कुरुपता से भर दिया गया हैshridhi (47)in poem • 3 years agoन बोलूँ सच तो कैसा आईना मैं जो बोलूँ सच तो चकना-चूर.........न बोलूँ सच तो कैसा आईना मैं जो बोलूँ सच तो चकना-चूर हो जाऊँshridhi (47)in poem • 3 years ago'उसने कितनी ही प्रेम कविताएँ लिखीं चढ़कर उपमाएँ दी फिर भी उसने............'उसने कितनी ही प्रेम कविताएँ लिखीं चढ़कर उपमाएँ दी फिर भी उसने किसी रिश्ते के लिए; प्रेम को शर्त नहीं बनाया क्योंकि, वह जानता था कि प्रेम की शर्त समाज से प्रेम को ख़त्म कर देगी|shridhi (47)in poem • 3 years ago'अंधे आदमी की आँख उसके पैर में...........'अंधे आदमी की आँख उसके पैर में होती है|shridhi (47)in poem • 3 years agoयह आपकी सड़क है, और आप अकेले हैं, अन्य लोग आपके साथ चल सकते हैं, लेकिन ....यह आपकी सड़क है, और आप अकेले हैं, अन्य लोग आपके साथ चल सकते हैं, लेकिन कोई भी आपके लिए नहीं चल सकता है|shridhi (47)in poem • 3 years agoकहो तो डरो कि हाय यह क्यों कह दिया न कहो तो डरो..........कहो तो डरो कि हाय यह क्यों कह दिया न कहो तो डरो कि पूछेंगे चुप क्यों हो