तब्लीग मुस्तहब है या फ़र्ज़
⭕आज का सवाल नंबर २६९४⭕
एक साहब तब्लीग़ी जमात में जाने को फर्ज़े एन फ़रमाते हैं और हज़रत थानवी रहमतुल्लाही अलय्हि मन्बूब (मुस्तहब) फ़रमाते है।
🔵जवाब🔵
حامدا و مصلیا و مسلما
असल यह है के दीन सीखना फर्ज़े ऐन है।
उसकी एक सुरत मदारिस में पढना है, और एक सुरत तब्लीग में जाना है।
और भी सूरतें हैं (किसी अल्लाह वाले से बे'अत मुरीद होने)
मेवात के लोगों को बताया गया था के दीन सीखना फ़र्ज़ है।
इसलिए या मदारिस क़ाइम करो या दूसरी सूरतें इख़्तियार करो।
अगर तुम कोई दूसरी सुरत इख़्तियार न कर सको तो मुतय्यन तौर पर तब्लीग ही में निकलो, इसलिये वहाँ लोग यही कह कर निकालते हैं के दीन सिखने के लिए चलो, इतनी बात में किसी को इख्तिलाफ नहीं।
हज़रत थानवी रहमतुल्लाह अलय्हि जिस चीज़ को मुस्तहब फ़रमाया है उस तब्लीग के यह माने नहीं, बल्कि वहाँ तब्लीग से मुराद दूसरों को दीन सिखने के लिए निकलना है।
ज़ाहिर है के काम अवाम का नहीं है, बल्कि ख़वास अहले इल्म का काम है, फिर उस को फर्ज़े एन कैसे कहा जा सकता है!
लिहाज़ा दोनों का महमल (मतलब, मुराद) अलग अलग है और दोनों सहीह है।
📘हक़ीक़ते तब्लीग सफा ४६
✒ इफ़ादात हज़रत दायी ए कबीर फकीहुल उम्मत मुफ़्ती महमूद हसन गंगोही रहमतुल्लाह अलैहि।
و الله اعلم بالصواب
✍🏻मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन
🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा, सूरत, गुजरात, इंडिया.
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