(आंसुओं के सामने पत्थर दिली की क्या बिसात ,
अच्छे अच्छे घर ढह जाते हैं बरसातों में |)
हसने-हँसाने के मौसम जाते -जाते ,
सुना देते हैं आंसुओं का पैगाम -
"इंतज़ार खत्म हुआ ,
दुआ कुबूल हुई |
शर्तों वाले रिश्ते बेपर्दा होंगे ,
बेशर्त मुहब्बत आखिरकार , मेज़बान बनने को तैयार हुई |"
हसी-ठहाके की सब औलादें बड़े होते होते ,
सुना जाते हैं आसुओं के फरमान -
"धोखा ख़त्म हुआ
सुकून की वापसी हुई |
मतलबी रिश्ते राख होंगे
कर्म बंधन आखिरकार, खशीओं को आज़ादी देने को तैयार हुई |
नक़ली आँखें, उधारी कपडे, नक़ली बाल पहन कर,
नक़ली ठहाकों ने पिया महफिलों में ये जाम -
" दर्द कम हुआ
दिल की मुराद पूरी हुई |
नए रिश्ते ईजाद , झूठ पे जो अगर होंगे
मन के कारण आज कुछ खुशिओं की कमाई हुई "|
(आंसुओं के सामने पत्थर दिली की क्या बिसात ,
अच्छे अच्छे घर ढह जाते हैं बरसातों में |)