क्या प्रजनन के लिए किए जाने पर ही सेक्स प्राकृतिक होता है: जस्टिस रोहिंगटन

in anarchy •  7 years ago 

समलैंगिकता अपराध है या नहीं, मंगलवार को इस मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस रोहिंग्‍टन ने कहा कि प्रकृति का नियम क्या है? क्या प्रकृति का नियम यही है कि सेक्स प्रजनन के लिए किया जाए?

image source

समलैंगिकता अपराध है या नहीं, इसे तय करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. मंगलवार को इस मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस रोहिंग्‍टन ने कहा कि प्रकृति का नियम क्या है? क्या प्रकृति का नियम यही है कि सेक्स प्रजनन के लिए किया जाए? अगर इससे अलग सेक्स किया जाता है तो वो प्रकृति के नियम के खिलाफ है? रोहिंग्टन ने कहा कि हमने NALSA फैसले में सेक्स को ट्रांसजेंडर तक बढ़ा दिया है. वहीं चीफ जस्टिस ने कहा कि आप सेक्स और यौन प्राथमिकताओं को मत जोडिए. ये एक निरर्थक प्रयास होगा. जस्टिस रोहिंगटन नरीमन ने कहा कि अगर हम सन्तुष्ट हुए की धारा 377 असंवैधानिक है तो इसे रद्द करना हमारा फ़र्ज़ है.

समलैंगिकता अपराध है या नहीं? केंद्र ने कहा- धारा 377 का मसला हम सुप्रीम कोर्ट के विवेक पर छोड़ते हैं

इस मामले में वकील मनोज जॉर्ज ने कहा कि पारसी विवाह और तलाक कानून में अप्राकृतिक यौनाचार तलाक का आधार है. जस्टिस रोहिंग्‍टन इसे अच्छी तरह जानते हैं. जस्टिस रोहिंगटन ने कहा कि अप्राकृतिक यौनाचार को 377 का हिस्सा बनाया जा सकता है. CJI ने कहा कि अगर 377 पूरी तरह चली जाती है तो अराजकता फैल जाएगी. हम इस मामले में पुरुष से पुरूष और महिला व पुरुष के बीच सहमति से बने संबंधों पर हैं. आप अपनी यौन प्राथमिकताओं को बिना सहमति के दूसरों पर नहीं थोप सकते. इस मामले की सुनवाई के दौरान चर्च काउंसिल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि किसी से सहमति उसकी जान की धमकी देकर भी ली जा सकती है. कोर्ट को इसे प्रकृति का नियम नहीं मानना चाहिए. 377 में सहमति का जिक्र नहीं हैं.

धारा 377: CJI बोले, केंद्र ने भले ही इस मुद्दे को हम पर छोड़ा, पर हम इसकी संवैधानिकता पर विस्तृत विश्लेषण करेंगे

इस मामले में पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 377 से सहमति से समलैंगिक यौन रिश्तों के अपराध के दायरे से बाहर होते ही एलजीबीटीक्यू समुदाय के प्रति इसे लेकर सामाजिक कलंक और भेदभाव भी खत्म हो जाएगा. वहीं इस मामले में केंद्र की ओर से कोर्ट में पेश ASG तुषार मेहता ने कहा कि हमने अपनी बात हलफनामे में रख दी है. कोर्ट को मुद्दे को सीमित रखना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम इस मामले में खून के रिश्तों व अन्य मुद्दों की तरफ नहीं जा रहे. हम इस पर विचार कर रहे हैं कि LGBT समुदाय में यौन प्राथमिकताओं के दायरे में 377 संवैधानिक रूप से वैध है या नहीं.

समलैंगिकता अपराध है या नहीं? सुप्रीम कोर्ट में धारा 377 पर सुनवाई, 10 बड़ी बातें

जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा ने कहा था कि भले ही केंद्र ने इस मुद्दे को हम पर छोड़ दिया लेकिन हम 377 की संवैधानिकता पर विस्तृत विश्लेषण करेंगे. केंद्र के किसी मुद्दे को खुला छोड़ देने का मतलब ये नहीं है कि उसे न्यायिक पैमाने पर देखा नहीं जाएगा. इस मामले में सुनवाई 17 जुलाई को जारी रहेगी. जस्टिस ए एम खानविलकर ने कहा कि ये यू टर्न नहीं है. निजता के अधिकार के बाद अब इस मामले को भी कोर्ट के विवेक पर छोड़ा गया है. जस्टिस चंद्रचूड ने कहा कि आप इसे कैसे यूटर्न कह सकते हैं. केंद्र ने 2013 के फैसले के खिलाफ अपील नहीं की थी. एक याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि केंद्र को इस पर आम राय लेनी चाहिए थी, लेकिन उसने मामले को कोर्ट पर छोड़ दिया. चीफ जस्टिस ने कहा कि हम बहुमत की नैतिकता पर नहीं बल्कि संवैधानिक नैतिकता पर चलते हैं.

follow me on steemit zfollow.gif AND resteem it zre.png

Authors get paid when people like you upvote their post.
If you enjoyed what you read here, create your account today and start earning FREE STEEM!
Sort Order:  

Hi! I am a robot. I just upvoted you! I found similar content that readers might be interested in:
https://khabar.ndtv.com/news/india/supreme-court-hearing-pleas-seeking-scrapping-of-section-377-of-ipc-that-criminalises-homosexuality-1884727