Thought

in be •  7 years ago 

पर मुझे नींद क्यूँ नहीं आती

भूख को पकाता है ठंडे चूल्हे पर,
पढ़ाई छोड़ मुन्ना कमाने की आदत डालता है ,
फिर रोता छाती पीटता है अपने नसीब पर
नहीं जानता कि उसका नसीब ही तो
नेताओं को पालता है !

हम आज भी नसीब से ही खुशियाँ छानते हैं
खाना खाने को भी इक भाग्य मानते हैं
क्या खूब है जीने का तरीका मित्र
बिकते हैं पर कीमत भी नहीं जानते हैं !

हमें आ गया है करना व्यापार
खेत बेच चुके
अब रिक्शे के मालिक हैं !
कितने सलीके से आजकल रिक्शे पे ही सोते हैं
हम वो सब करने को हैं तैयार
जिसमें हम मानव नहीं मशीन होते हैं !

सपने ओढ़ सोता पूरा हुजूम
आँखें खोलने को नहीं है राजी !
पूरा हिन्दुस्तान लटका है रात की सलीब पर,
सपने अच्छे हैं बस इसलिए हर कोई
न आँखें खोलता है
ना ही कुछ बोलता है
खिड़की से आती धूप को ढ़केल
सर पे खड़ी सुबह को टालता है !!

पर मुझे नींद क्यूँ नहीं आती ?
जागता हुआ मैं इक तमाशा बनता हूँ
सोते लोग तमाशबीन होते हैं !
खेत से रिक्शे तक के सफर पर
संसद है मौन
शेयर बाजार भी कुछ नहीं बोलता है !

मेरी जिक्र की चौहद्दी में तो फिर भी वही मुन्ना है
जिसका पढ़ाई छोड़ना मुझे आज तक सालता है !!
--------------------------- Anil Sahrawat

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