श्री दशरथ माँझी - “जब तक तोड़ूँगा नहीं तब तक छोड़ूँगा नहीं “
मैं अचंभित रह गया गया जब गैलोर (गया) में उनके द्वारा काटे गये पहाड़ पर खड़ा हुआ, उस ज़मीन पर खड़े होकर ही वास्तव में पता चला श्री दशरथ माँझी सामान्य व्यक्ति नहीं थे
क्या तो सपना था, क्या जज्बा, क्या जुनून क्या मेहनत…
ये तो ठीक पर ये सब consistency के साथ 22 साल तक बना रहा और एक पल भी अपने सपने से विभक्त नहीं हुए और न उसे आँखों से ओझल होने दिया,
हम क्या सोचते हैं उनके पास चुनौतियों की भरमार कम होगी? लोगों के तानों की बौछार कम होगी?
उन्हें नेगेटिव करने वालों की कमी होगी ?
“पर वो कर गये क्योंकि उनके सपने में दम था।”
पूरी बात समझने के लिये तो इस जगह देखना पड़ेगा। 😊
उन्होंने कैसे 25 फ़िट ऊँचे, 360 फ़िट लंबे और 30 फिट चौड़े पहाड़ का सीना चीर दिया।।
नमन है दशरथ माझी को
धन्य है भारत मां के सपूत
जय मां भारती
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