Styarth prakash 161

in book •  6 years ago  (edited)

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(प्रश्न) जब परमेश्वर के श्रोत्र नेत्रदि इन्द्रियां नहीं हैं फिर इन्द्रियों का काम कैसे कर सकता है?



(उत्तर)

अपाणिपादो जवनो ग्रहीता पश्यत्यचक्षुः स शृणोत्यकर्णः ।

स वेत्ति विश्वं न च तस्यास्ति वेत्ता तमाहुरग्रयं पुरुषं पुराणम्।।१।।

यह उपनिषत् का वचन है।

परमेश्वर के हाथ नहीं परन्तु अपनी शक्तिरूप हाथ से सब का रचन, ग्रहण करता, पग नहीं परन्तु व्यापक होने से सब से अधिक वेगवान्; चक्षु का गोलक नहीं परन्तु सब को यथावत् देखता; श्रोत्र नहीं तथापि सब की बातें सुनता, अन्तःकरण नहीं परन्तु सब जगत् को जानता है और उस को अवधिसहित जाननेवाला कोई भी नहीं। उसी को सनातन, सब से श्रेष्ठ सब में पूर्ण होने से पुरुष कहते हैं। वह इन्द्रियों और अन्तःकरण के विना अपने सब काम अपने सामर्थ्य से करता है।
(Source);(http://satyarthprakash.in/hindi/chapter-seven/)

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