आज मुझसे एक जईफा रुबरु हुई...
उसको पूरे दो महीने के बाद वृद्धा पेंशन मिला था..
उसने मुझसे चंद रोजमर्रा के सामान
खरीदे,
उसके चेहरे पर अपने नाती- पोतो के
लिए सामान लेते हुए खुशी साफ झलक रहीं थी..
जब मैंने उससे कुछ पूछा..
वह मुसकुराने लगी..
मैनें पूछा हर महीनें पेंशन मिलती हैं,
तो उसने कहा एक महीने में नही बेटा !
दो महीने में पेंशन आतीं है...
फिर उस जईफा ने अपने सामान को अपने नाजूक कंधो पर उठाया और वह अपने घर की जानिब चल पड़ी...
उसके जाने के बाद मेरे मन में कईं
सवाल उठे कि......
बुढ़ापे में कितनी बेबसी होती है,
बुढ़ापे में कितनी मजबूरियाँ होती है,
बुढ़ापे में कितनी लाचारी होती है...
शैशवावस्था से प्रारम्भ होकर बाल्यावस्था, किशोरावस्था एवं युवावस्था के पश्चात वृद्धावस्था आती हैं यह सहारा लेने की अवस्था है यह निर्भरता की अवस्था होती है कभी बच्चों का सहारा तो कभी छड़ी का सहारा....
सहारा एक ऐसा शब्द जिसके बिना सफलता
अदृश्य होती है..
बच्चों को अभिभावक के सहारे की...
अभिभावक को परिवार के सहारे की...
पत्नी को पति के सहारे की....
छात्र को शिक्षक के सहारे की...
🙏🙏🙏
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