मेवाड़ का शेर : वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप (Mewar ka Sher : Veer Shiromani Maharana Pratap)

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मेवाड़ का शेर : वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप (Mewar ka Sher : Veer Shiromani Maharana Pratap)

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परिचय
मेवाड़ के वीर योद्धा महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को सिसोदिया राजवंश परिवार में हुआ था। महाराणा प्रताप के पिता महाराणा उदय सिंह एवं माता रानी जयवंत कंवर थी। महाराणा प्रताप के जन्म स्थान को लेकर कुछ विरोधाभास है कुछ इतिहासकार और लेखक महाराणा प्रताप का जन्म स्थान मेवाड़ के कुंभलगढ़ को मानते हैं तो कुछ इतिहासकार महाराणा प्रताप की जन्मस्थली पाली के राज महलों को बताते हैं। हालाँकि तथ्यों के आधार पर महाराणा प्रताप का जन्मस्थान कुंभलगढ़ ही माना गया।

महाराणा प्रताप जयन्ती की 2 तारीखें
अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को कुंभलगढ़ में हुआ था लेकिन राजस्थान में राजपूत समाज उनका जन्मदिन हिंदू तिथि के अनुसार मनाते हैं । महाराणा प्रताप का जन्म हिंदू तिथि के अनुसार जेष्ठ शुक्ल की तृतीया तिथि को हुआ था इसलिए राजपूत समाज महाराणा प्रताप का जन्मदिन जेष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाता है।

बचपन का नाम
महाराणा प्रताप जब छोटे थे तब उनका अधिकतर समय भीलों के साथ बीता था, भीलो के साथ ही वह युद्ध कला सीखते थे। उस समय भील अपने पुत्र को कीका कह कर संबोधित करते थे। भील प्रताप को भी कीका नाम से ही पुकारते थे इसीलिए महाराणा प्रताप का बचपन में नाम कीका पड़ गया था।

महाराणा प्रताप को कैसे मिली राजगद्दी
28 फरवरी 1572 को राणा उदय सिंह ने अपने देहांत से पहले अपनी सबसे छोटी रानी से हुुये उनके नौवें पुत्र जगमाल को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। उनके इस निर्णय से जनता प्रसन्न नहीं थी जिसके चलते उदयसिंह की मृत्यु के कुछ समय बाद महाराणा प्रताप को राजगद्दी पर बिठा दिया गया। इतिहासकारों के अनुसार प्रताप के मामा अखई राज और ग्वालियर के राम सिंह ने प्रताप को राणा बनने के लिए मनाया और उनका राज्याभिषेक किया था।

महाराणा प्रताप की रानियां और बच्चें
महाराणा प्रताप ने कुल 11 शादी की थी जिससे उनकी कुल 11 रानियां थी और उन सभी से महाराणा प्रताप के पुत्र भी थे। महाराणा प्रताप की पहली शादी 1557 में 17 वर्ष की आयु में चावण्ड के
राव माम्रक सिंह की पुत्री अजबदे पंवार से हुई थी।

महाराणा प्रताप की रानियां और उनसे हुए पुत्रों के नाम

  1. महारानी अजबदे पंवार से अमरसिंह और भगवान दास
  2. फूलबाई राठौर से चंदा सिंह और शेख सिंह
    3 अमर बाई राठौर से नाथा सिंह
    4 शहमति बाई हाड़ा से पूरा सिंह
    5 अलमदेबाई चौहान से जसवंत सिंह
    6 रत्नावती बाई परमार से माल सिंह, गज और क्लिंगु
    7 लखाबाई से रायभान सिंह
    8 जसोबाई चौहान से कल्याणदास
    9 चंपाबाई जंथी से कल्ला, सनवाल दास सिंह और दुर्जन सिंह
    10 सोलनखिनीपुर बाई से साशा और गोपाल
    11 खीचर आशाबाई से हत्थी सिंह और राम सिंह

महाराणा प्रताप के उत्तराधिकारी
महाराणा प्रताप की मृत्यु के बाद उनके और महारानी अजबदे पंवार के पुत्र अमर सिंह महाराणा प्रताप के उत्तराधिकारी नियुक्त हुए थे।

महाराणा प्रताप का भाला, कवच और तलवारें
इतिहासकारों के अनुसार महाराणा प्रताप का भाला 81 किलो वजन का था और उनका पीतल और तांबे से बना कवच 72 किलो का था। इनके अलावा महाराणा प्रताप लगभग 20-20 किलो की 2 तलवारें हमेशा साथ रखते थे। महाराणा प्रताप का भाला, कवच, तलवारें और ढाल मिलाकर 208 किलो वजनी थे जिन्हें वो साथ लेकर लड़ते थे।

महाराणा प्रताप का भाला
कोई पूछे कितना था राणा का भाला
तो कहना कि अकबर के जितना था भाला
जो पूछे कोई कैसे उठता था भाला
बता देना हाथों में ज्यों नाचे माला
चलाता था राणा जब रण में ये भाला
उठा देता पांवों को मुग़लों के भाला
जो पूछे कभी क्यों न अकबर लड़ा तो
बता देना कारण था राणा का भाला

महाराणा प्रताप 2 तलवारें क्यों रखते थे
महाराणा प्रताप एकमात्र ऐसा योद्धा थे जिनमें यह खूबी थी कि वह अपने शत्रु के लिए भी एक तलवार हमेशा अपने साथ रखते थे।महाराणा प्रताप को उनकी मां जयवंता बाई ने नसीहत दी थी कि कभी निहत्थे शत्रु पर वार मत करो उसे अपनी अतिरिक्त तलवार दो और फिर ललकारो। इस कारण महाराणा प्रताप हमेशा अपने साथ 2 तलवार रखते थे ताकि यदि सामने वाला शत्रु निहत्था भी हो तो उन्हें अपनी एक तलवार दे सके।

महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक
महाराणा प्रताप का नीलवर्ण घोड़ा चेतक एक अरबी घोड़ा था जो गुजरात के एक व्यापारी द्वारा लाया गया था। यह व्यापारी काठियावाड़ी नस्ल के तीन घोड़े चेतक त्राटक और अटक लेकर मारवाड़ आया था। महाराणा प्रताप ने युद्ध क्षमता के अनुसार घोड़ों की परीक्षा ली थी जिसमें अटक मारा गया था। शेष दो घोड़ों में से चेतक ज्यादा फुर्तीला और बुद्धिमान था जिसके कारण महाराणा प्रताप ने मुंह मांगी कीमत चुका कर चेतक को अपने पास रख लिया। मेवाड़ सेना के श्रेष्ठ अश्व प्रशिक्षकों ने तथा महाराणा प्रताप स्वयं ने भी चेतक को प्रशिक्षित किया था। चेतक ने महाराणा प्रताप के साथ मिलकर कई लड़ाइयां लड़ी और जितायी थी। कहा जाता है कि चेतक इतना समझदार और फुर्तीला था कि महाराणा प्रताप की आँख की पुतली के इशारों से ही समझ जाता और तुरंत आदेश का पालन कर देता

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