इस जीवन में जो भी चमत्कारिक कार्य हुए हैं वे सब विचारों की एकाग्रता
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से ही सम्पन्न हो पाये हैं। मनुष्य यदि विचारों के संसार में विचरण करे और यह
सोचे कि उसको बहुत बढ़िया वस्तुएं प्राप्त होने वाली हैं, कुछ बहुत ही सुन्दर, बहुत
बड़ा, कुछ बहुत ही उत्तम उसकी प्रतीक्षा कर रहा है और इसके लिए वह उसी प्रकार
हम सब अपने विचारों से ही बनते हैं। जैसे विचार होंगे, वैसा ही हमारा स्वरूप
हम जिस किसी पर भी केन्द्रित होते हैं, बस समझिए कि वही हम है। मनुष्य
के मन में नित्यप्रति इस प्रकार के विचार उत्पन्न होना कि हम वह उच्चतम मानव
यत्न भी करे और उसका मस्तिष्क उसी दिशा में रचनात्मक कार्य करे
लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संघर्ष करेगा और निश्चय ही उसको उसकी प्राप्ति भी होगी।
आपके मन में यह धारणा होनी चाहिए कि आप वास्तव में प्रगति कर रहे हैं, किसी
उच्चता की ओर आगे बढ़ रहे हैं तो निश्चय ही आप अपने लक्ष्य-प्राप्ति में
होंगे और किसी उच्च लक्ष्य को प्राप्त करेंगे। किन्तु यदि आपके विचार ही उच्च नहीं
हैं तो आप कभी भी किसी ऊंचे लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकते।कुछ
लोगों की यह धारणा होती है कि यदि वे अपनी कल्पनाओं, स्वप्नों से
खेलने लगें तो हो सकता है कि उनको सफलता न मिले, किन्तु यह उनका अपना
विचार ही है। मानव में इन विचारों की उत्पत्ति सद्प्रयासों के लिए होती है जिससे
कि हम वास्तविकता को पहचान सकें। वे हमको अपने आदर्शों के अनुकूल चलने
में सहायता देते हैं, भले ही हमको कितनी ही कठिन परिस्थितियों में काम क्यों न
करना पड़े। उस समय हमारे ये प्रेरक विचार ही हमारा उत्साह बढ़ाते हैं। हम जो
स्वप्न संजोते हैं, वही हमें वास्तविकता की ओर ले जाते हैं।
कई बार मनुष्य इस आशंका में पड़ जाता है कि उसकी आत्मा किसके आश्रय
से प्रगति के पथ पर आगे बढ़ सकती है वह अद्भुत और दिव्य पदार्थ क्या है जो
हमारी आत्मा को आनन्दित कर सकता है ऐसे लोगों को यह ध्यान रखना चाहिए
कि वह पदार्थ अन्य कुछ नहीं केवल उसके आदर्श से उत्पन्न प्रभाव ही है। यह आपके
मन में उत्पन्न वह पावन ज्योतिपुंज है जो आपके जीवन-पथ को सतत आलोकित
करता रहता है। अभिप्राय यह है कि आदर्शवादी और आशावादी व्यक्ति के लिए
जीवन-पथ पर आगे बढ़ने के लिए उसके अपने आदर्श ही उसका पथ-प्रदर्शन करते
हैं, किसी अन्य की सहायता की उसको आवश्यकता नहीं होती।