नई पीढ़ी के बच्चों के संस्कार से पुरानी पीढ़ी के बच्चों के संस्कारो मे अंतरsteemCreated with Sketch.

in hive-179660 •  2 years ago 

आज कल के दौड़ रूपी दुनिया मे संस्कार का भाव अब समाप्त होता जा रहा है जैसे ट्रेन की चलती इंजन के सामान दुनिया जिसमें ट्रेन एक स्थान से दूसरे स्थान पर टिकती नहीं है बल्कि वह निरंतर चलती रहती है वहीं हाल अब मनुष्य के संस्कारो मे होता जा रहा हैं।

ऐसे ही हमारे देश के व्यक्ति की स्थिति होती जा रही है जिसमे प्यार और लगाव की भावना दिन प्रतिदिन घटती जा रही। लोग एक दूसरे से दूरी बनाते जा रहे हैं । अब लॉगो के अंदर पाश्चिम के भाषाओं मे प्रेम और जुडाव होता जा रहा है वो अपनी भाषाओं को बुलाती जा रहे हैं और अन्य भाषाओ को स्वीकारते नजर आ रहे हैं लगता है अब उनको उस प्रेम रूपी भाषा से शर्म आती हैं ।

ये परिवेश पश्चिमी देशों को देख कर अपने तौर तरीको को छोड़कर दूसरे के व्यव्हारो को स्वीकार करके अपने संस्कारो को त्यागा जा रहा है।

वहीं पश्चिमी देशों के लॉगो ने हमारी भाषाओ पे अध्य्यन करने के लिए हमारे देश मे आ रहे है और वो इस भाषा मे प्रवीणता पा रहे है।

फिर भी इस देश के लॉगो मे जागरूकता की भावना जागृत नहीं हो रही है।

इस भीड़ रूपी दुनियां मे हमारे देश के संस्कारो को पूरी दुनिया मे डंका बजता था पर ऐसा लग रहा है कि अब आने वाले कुछ बर्षो हम लॉगो के संस्कारो को, तौर तरीको को पश्चिमी देशों ने कब्ज़ाना शुरू कर दिया है पर उनकी भी गलती है ये खुद की कमिया जो अपने देश मे सांस्कृतिक जीवन को संभाला नही जा रहा है ।

आज अपने देश मे हर धर्म के लोग एक दूसरे से कटुता की भावना रखे हुए है किसी को एक दूसरे से प्रेम ,लगाव की भावना नहीं लगती दिख रही जैसे ही मौका मिला तुरंत छल कपट कर दिए जाए अब ये स्थिति आ गइ हैं ।

मंदिर मस्जिद करते करते कट मरते जा रहे प्रेम का सौहार्द नहीं रह गया है।

आज हर मनुष्य किसी के बढ़ते वर्चस्व को देखना नहीं चाहता ये भावना उसको और अँधेरे के कुए मे ढकेलती जा रही हैं ।

उसी प्रकार आज कल के बच्चे है जो अपने संस्कारो को दूर ढकेलते जा रहे है उनको ना माँ बाप की कद्र रह रही है और ना परिवार मे कौन बड़ा है कौन छोटा ये नहीं दिख रहा ये सब भावना अब समाप्त होती जा रही हैं।

बड़े होने के बाद अपने ही माँ बाप को छोड़कर चले जा हैं ये स्थिति बहुत दयनीय होती जा रही हैं दिन प्रतिदिन ये स्थिति बढाती जाअ रही है आज के दिन मे उन बूढ़े माँ बाप को बृद्ध आश्रम एक सहारा बन कर रह गया है वहीं माँ बाप अपने बच्चों को अपना पेट कट के पढ़ा लिखा रहे हैं और वहीं बच्चे ये सारी तक्लीफ को दरकिनार कर अलग हो जा रहे हैं ।

पहले के बच्चों मे ये संस्कार उनको सिखाया जाता था उनके घर के बुजुर्गो से एक कहानी के रूप मे सारी बाते धीरे धीरे बताई जाअति थी कि लॉगो से बात करते वक़्त तुम्हारा व्यवहार कैसा होना चाहिए ये सारी चीजे घर के बुजुर्गो से सिखाने को मिलती थी पर आज कल के बच्चे उनके पास बैठना नहीं चाहते ।

आज कल के बच्चों पर अगर आप अपने संस्कारो को नहीं सिखायेंगे तो बाद मे चलकर ये बाबुल के पेड़ के सामान हो जायेंगे जो पेड़ अपनी इस्थिति देख कर नहीं परिवर्तन हुआ बाद मे चल कर वह अब लगभग समाप्त होता जा रहा हैं।

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