कुछ तो है …
जो तुम्हे अच्छा नहीं लगता।
मेरा तुमको देखना
या तुम्हे देखकर मुस्कुरा देना।
पर क्या करूँ?
तुम जब भी मेरे पास से गुजरती हो
तुम्हारी महक मेरी नजरो को
तुम्हारी ओर खींच ही लेती है
और तुम्हारी हर एक झलक,
जैसे नाइट्रस ऑक्साइड हो,
मेरे होठों पर मुस्कुराहट ले ही आती है।
अब तुम ही बताओ –
मैं वो करूँ जो मुझे अच्छा लगता है
या फिर
वो ना करूँ जो तुम्हे अच्छा नहीं लगता?
आज तक तो
पहला विकल्प ही बेहतर लगता था ..
पर अब सोचता हूँ
दूसरा विकल्प अपना लूँ –
वो ना करूँ जो तुम्हे अच्छा नहीं लगता।
जिस दिन तुम्हे पहली बार देखा था –
काम से ब्रेक लेकर ऑफिस पैंट्री में
कॉफ़ी पी रही थी तुम।
तुम्हे देखा और दिल ने कहा
बस देखता रहूँ तुम्हे।
दिमाग ने तरक़ीब सुझायी –
वो टाइम नोट कर लिया।
फिर क्या,
रोजाना उसी टाइम कॉफ़ी पीना
एक आदत बन गयी।
कभी तुम दिख जाती वहाँ,
कभी नहीं भी दिखती;
और जब तुम वहाँ नहीं आती,
तब प्याले में पड़ी कॉफ़ी
तुम्हारा इंतज़ार करती
और ठंडी होकर वाशबेसिन में चली जाती।
इस तरह कितनी ही बार
कॉफ़ी फेंकी है मैंने।
लेकिन इसकी जिम्मेदार तुम हो;
इसमें मेरी कोई गलती नहीं।
कुछ दिनों से देख रहा हूँ –
कॉफ़ी पीने की जगह,
तुम अक्सर फ़ोन पर होती हो।
फ़ोन पर बात करते हुए
तुम्हारे चेहरे के भाव देखता हूँ।
बहुत खुश होती हो तुम।
शायद,
तुम्हे जीवनसाथी मिल गया है।
लगता है
किसी की बददुआ लगी है तुम्हे –
जो तुम्हे मैं नहीं मिल सका !!
~ चित्र