Pehle Tamam Umar Kisi Na Kisi Darr Mein Nikal Gayi

in hive-196037 •  last year 


पहले तमाम उम्र किसी न किसी डर में निकल गई

और अब ये डर कि तमाम उम्र निकल गई !

मैं जिया भी या नहीं मुझे इस की खबर नहीं

उम्र तो किसी न किसी उधेड़ बुन में निकल गई !

बाद लड़ने के उस से मैं ये सोचता रहा

बात तो कुछ भी न थी जुबां यूं ही फिसल गई !

उदास लम्हों में मैने ये महसूस किया है

तुम्हें याद किया मैंने और तबीयत बहल गई !

लकीरें मेरे हाथों की कुछ उम्दा तो न थीं

तेरा हुआ कर्म और मेरी किस्मत बदल गई !

उमर् जीने की सज़ा इक उमर् के बाद

समझ जाओ गे तुम भी जब उमर् निकल गई !

By Subhash Chander Gupta (Bewafa)

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