भारत में आये दिन कोई न कोई त्यौहार अपनी विशिष्टता से हमें उसके विराट और जटिल स्वरूप के दर्शन कराता रहता है। ऐसा ही एक विशिष्ट त्यौहार आज है नागपंचमी। श्रावण शुक्ल पंचमी को नागपंचमी पर्व के रूप में मनाया जाता है। नागपंचमी नागपूजन पर आधारित पर्व है, जो नागों के प्रति मनुष्यों की कृतज्ञता के दिखाने से शुरू हुआ, पर आज के परिवेश में यही कृतज्ञता दिखाना सर्पों पर भारी पड़ रहा है।
सनातन संस्कृति ने पशु-पक्षी, वृक्ष-वनस्पति सबके साथ आत्मीय संबंध जोड़ने का प्रयत्न किया है। हमारे यहां गाय की पूजा होती है। कई बहनें कोकिला-व्रत करती हैं। कोयल के दर्शन हो अथवा उसका स्वर कान पर पड़े तब ही भोजन लेना, ऐसा यह व्रत है। हमारे यहाँ वृषभोत्सव के दिन बैल का पूजन किया जाता है। वट-सावित्री जैसे व्रत में बरगद की पूजा होती है, परन्तु नाग पंचमी जैसे दिन नाग का पूजन जब हम करते हैं, तब तो हमारी संस्कृति की विशिष्टता पराकाष्टा पर पहुंच जाती है।
सनातन पौराणिक कथाओं में सांपों का महत्वपूर्ण स्थान है। सांपों का उल्लेख हमेशा सनातन वैदिक पुस्तकों में किया जाता है और उन्हें महाभारत, विष्णु पुराण जैसे प्रसिद्ध धार्मिक महाकाव्यों में दर्शाया गया है।
भारत देश कृषिप्रधान देश है। सांप खेतों का रक्षण करता है, इसलिए उसे क्षेत्रपाल कहते हैं। जीव-जंतु, चूहे आदि जो फसल को नुकसान करने वाले तत्व हैं, उनका नाश करके सांप हमारे खेतों को हराभरा रखता है। साँप हमें कई मूक संदेश भी देता है। साँप के गुण देखने की हमारे पास गुणग्राही और शुभग्राही दृष्टि होनी चाहिए। भगवान दत्तात्रय की ऐसी शुभ दृष्टि थी, इसलिए ही उन्हें प्रत्येक वस्तु से कुछ न कुछ सीख मिली।
साँप सामान्यतया किसी को अकारण नहीं काटता। उसे परेशान करने वाले को या छेड़ने वालों को ही वह डंसता है। साँप भी प्रभु का सर्जन है, वह यदि नुकसान किए बिना सरलता से जाता हो, या निरुपद्रवी बनकर जीता हो तो उसे मारने का हमें कोई अधिकार नहीं है। जब हम उसके प्राण लेने का प्रयत्न करते हैं, तब अपने प्राण बचाने के लिए या अपना जीवन टिकाने के लिए यदि वह हमें डँस दे तो उसे दुष्ट कैसे कहा जा सकता है? हमारे प्राण लेने वालों के प्राण लेने का प्रयत्न क्या हम नहीं करते? साँप को सुगंध बहुत ही भाती है। चंपा के पौधे को लिपटकर वह रहता है या तो चंदन के वृक्ष पर वह निवास करता है। केवड़े के वन में भी वह फिरता रहता है। उसे सुगंध प्रिय लगती है, इसलिए भारतीय संस्कृति को वह प्रिय है। प्रत्येक मानव को जीवन में सद्गुणों की सुगंध आती है, सुविचारों की सुवास आती है, वह सुवास हमें प्रिय होनी चाहिए।
हम जानते हैं कि साँप बिना कारण किसी को नहीं काटता। वर्षों परिश्रम संचित शक्ति यानी जहर वह किसी को यों ही काटकर व्यर्थ खो देना नहीं चाहता। हम भी जीवन में कुछ तप करेंगे तो उससे हमें भी शक्ति पैदा होगी। यह शक्ति किसी पर गुस्सा करने में, निर्बलों को हैरान करने में या अशक्तों को दुःख देने में व्यर्थ न कर उस शक्ति को हमारा विकास करने में, दूसरे असमर्थों को समर्थ बनाने में, निर्बलों को सबल बनाने में खर्च करें, यही अपेक्षित है।
इतने सारे गुण सर्प में देखने की क्षमता जो हमारे उन ऋषि मुनियों में थी उसका अगर १% भी अगर हम में होती तो आज हम भी इस पर्व को मात्र आडम्बर की तरह ना मना कर अपने अंतर में परिवर्तन लाने के लिए करते, किन्तु आज तो इस पर्व ने उल्टी ही गंगा बहा दी है। नागों का कृतयज्ञ होने के उल्टे हमने इस पर्व को उनके विनाश का एक कारण बना दिया। आस्था के नाम पर सपेरे हर साल जंगलों से पकड़े गए सांपों पर अत्याचार कर पैसे कमाते हैं, जबकि सांप दूध नहीं पीते, उन्हें पिटारे में बंद कर यातना दी जाती है और भूखा रखकर दूध पिलाया जाता है। वन विभाग इस मामले में कार्रवाई नहीं करता। सपेरों के बच्चे भी सांपों को गली-गली लेकर घूमते हैं।
नागपंचमी के दिन नाग देवता या सर्प की पूजा की जाती है और उन्हें दूध से स्नान कराया जाता है। लेकिन कहीं-कहीं दूध पिलाने की परम्परा चल पड़ी है। नाग को दूध पिलाने से पाचन नहीं हो पाने या प्रत्यूर्जता से उनकी मृत्यु हो जाती है। शास्त्रों में नागों को दूध पिलाने को नहीं बल्कि दूध से स्नान कराने को कहा गया है।
नाग-सर्प प्रकृति के अनुपम उपहार हैं और उनका जीवन नष्ट होने से बचाना हमारा पहला कर्तव्य है अत: नागपंचमी के दिन नागों को दूध न पिलाकर उनकी रक्षा करना बहुत जरूरी है। वैसे भी बढ़ती आबादी वाले इस देश में जहां पर्यावरण अनियंत्रित हो रहा है, लोग वृक्षों को उजाड़कर वहां बड़ी-बड़ी मंजिलों का भवन निर्माण करने को प्राथमिकता दे रहे हैं, घरों में आने वाले कीट-जंतु को हम अपने आसपास भी भटकने नहीं देते, ऐसी परिस्थिति में वह दिन बहुत ज्यादा दूर नहीं है, जब हम ईश्वर द्वारा प्रदत्त इस दुनिया को नष्ट करने में अहम भूमिका निभाएंगे।
ऐसी स्थिति से बचने के लिए ही हमें जहां अपने पर्यावरण और प्रदूषण के सुधार पर ध्यान देने के साथ-साथ कीट-जंतुओं को भी बचाने की आवश्यकता है और इसी कड़ी में हमें प्रकृति को बचाने के साथ-साथ नाग जाति की रक्षा करने की आवश्यकता है। नागपंचमी हो या अन्य कोई भी दिन, हमें नाग समुदाय के जीवन का संरक्षण कर पुण्य के भागी बनना चाहिए अत: नागपंचमी के पावन पर्व पर हम नागों को दूध न पिलाने का प्रण लेकर, हमारी धरती, प्रकृति तथा प्रकृति के अनुपम एवं अमूल्य उपहार नागों/सर्पों की रक्षा करने का संकल्प लें ।
वर्षों से जो सर्प हमारी रक्षा करते आ रहे हैं उन्हें अब हमारे लालच और अज्ञानता से हम ही बचा सकते हैं।
हम नागपंचमी का पर्व तो अवश्य मनाएं, उसके लिए हमें किसी जीव को हानि पहुंचाने की जरूरत नहीं है, बस जरूरत है तो सही मार्ग अपनाने की जिससे हम हमारी सुरक्षा के साथ-साथ प्रकृति, पर्यावरण, प्राणी जगत तथा सभी के जीवन की सुरक्षा का संकल्प लेकर किसी भी त्योहार का आनंद उठाएंगे तो निश्चित ही हमारी खुशी सौ गुना बढ़ेगी और जब हमारा मन प्रसन्न होगा, तो निश्चित ही इस बढ़ती आबादी वाले देश में भी हम अतिआनंद के साथ जीवन का लुत्फ उठा पाएंगे और हमारी आने वाली पीढ़ी-दर-पीढ़ी को सभी की सुरक्षा के प्रति जागरूक कर सकेंगे।
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Good article about beliefs on snakes in India, thanks for sharing #affable #india
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Thanks We mostly share topics related to Conservative Environmentalism.
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Our country is also known as festivals We celebrate many festivals but every festival has its own speciality, one of which is Nagpachami.
Thank you for sharing your thoughts with us ☺️
Nice diary from your side
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Hi @environmentindia
You are publishing good posts hence I got interested to check your profile and your posts, while checking your profile and posts, I see you have published many same posts in different communities. Not sure if you are aware or not but I have to inform you that;
You can make your blog/post in any community or relevant community but one blog/post in only one community.
Please do not post the same in different communities because the Steemit community doesn't support such activity and sees that as spamming.
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Thank You.
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