जागो indians जागो

in indian •  6 years ago 

गाँधी नेहरू का विकृत चेहरा इतिहास के पृष्ठों से
------------------------- सुभाष चन्द्र बोष की हत्या कांग्रेस औऱ अंग्रेजो की मजबूरी थी
-------------------------क्योंकि सुभाष के रहते न देश बाँटता न अधूरी स्वतंत्रता। होती।
कृपया अवश्य पढ़ें

क्या है हमारी आज़ादी का राज़.

क्या आपको मालूम है कि:
हमारे देश से 10 अरब रुपया पेंशन प्रतिवर्ष ब्रिटेन की महारानी एलिजावेथ को जाता है।

और

गोपनीय समझौतों के तहत प्रति वर्ष 30 हजार टन गौ-मांस हमारे यहां से ब्रिटेन को दिया जाता है।

हम आज भी आजाद भारत के वासी नहीं अपितु अपनी ही धरती पर आज भी गुलाम और किराएदार हैं।

ध्यान से पढ़कर सोचिए कि हमारा अस्तित्व है क्या.......?

15 अगस्त 1947 में भारत आज़ाद नही हुआ , 99 साल की लीज पर है भारत । ( तथ्य पढ़े )

99 साल की लीज पर भारत

युद्ध भूमि में भारत कभी नहीं हारा, लेकिन अपने ही चन्द जयचन्दों से हारा है।

अपनों ने जो समझौते किये, यह उससे हारा है, अपनी मूर्खता से हारा है।

उन्हीं समझौतों में एक “सत्ता के हस्तांतरण का समझौता” भी शामिल है।

पाकिस्तान गांधी की लाश पर बन रहा था, लेकिन इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट 1947 का न तो गांधी ने विरोध किया, न ही जिन्ना ने, न ही नेहरू ने और न ही सरदार पटेल ने।

सभी ने ब्रिटिश उपनिवेश यानी ब्रिटेन की दासता स्वीकार की थी।

वाकई मुझे उनकी बुद्धि पर तरस आता है जो कश्मीर को उपनिवेश इण्डिया से उपनिवेश पाकिस्तान में मिलाने के लिए रक्त बहाते हैं।

भारत को छद्म स्वतन्त्रता देने का विचार तो 1942 में ही कर लिया गया था,
1948 तक का समय सुनिश्चित करना तो महज़ एक बहाना था।

1947 के जून महीने में यह ज्ञात हुआ कि मुहम्मद अली जिन्ना, जो वास्तव में पुन्जामल ठक्कर का पोता था। उन्हीं दिनों जिन्ना को पता था कि उसकी टी.बी. की बीमारी अन्तिम स्तर पर है जिस कारण उसकी अधिक से अधिक 1 वर्ष की आयु शेष बची है।

तभी भारत की (छद्म) स्वतन्त्रता और भारत- विभाजन की प्रक्रिया को तेज़ कर दिया गया ।

4 जुलाई सन् 1947 से आरम्भ हुई यह प्रक्रिया 14 अगस्त सन् 1947 तक मात्र 40 दिनों में ही कूटनीतिक षड्यन्त्रों के तहत सम्पूर्ण हुई।

गांधी ने कहा था कि विभाजन मेरी लाश पर होगा जिसे सुनकर वर्तमान पाकिस्तानी
पंजाब में रहने वाले हिन्दुओं ने वर्तमान भारतीय क्षेत्रों में आकर बसने के निर्णय को बदल दिया ।

14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान बन गया और हिन्दू वहीं फँस गये।

इस प्रकार नरसंहार का एक ऐतिहासिक काल आरम्भ हुआ।

3 करोड़ हिन्दू पाकिस्तान के जबड़े में फँसे रह गए और
इस भयानक नरसंहार के बीच किसी ने ध्यान ही नहीं दिया कि आखिर हुआ क्या?

1946 के चुनावों के बाद जो सर्वदलीय संसद बनी उसमें विभाजन के प्रस्ताव को पारित करने हेतु संयुक्त रूप से 157 वोट समर्थन हेतु डाले गये,
जिसमें प्रमुख पार्टियाँ थीं कांग्रेस, मुस्लिम लीग और कम्यूनिस्ट पार्टी।

समर्थन में पहला हाथ नेहरू ने उठाया था । विरोध में अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के 13 वोट पड़े और रामराज्य परिषद के 4 वोट पड़े। विभाजन का प्रस्ताव पारित हो गया।

उसके बाद की समस्त प्रक्रिया दिल्ली में औरंगजेब रोड स्थित मुहम्मद अली जिन्ना के घर पर ही सम्पूर्ण हुई।

जिन्ना इतना धूर्त था कि जहाँ भू-तल पर नेहरू-गाँधी लार्ड माउंटबैटन के साथ कानूनी सहमतियाँ बना रहे थे, वहीं प्रथम तल पर जिन्ना अपनी कुछ सम्पत्तियाँ और
औरंगजेब रोड पर स्थित अपने घर को बेचने की प्रक्रिया पूरी कर रहा था।

मुहम्मद अली जिन्ना एक वकील था। नेहरू एक वकील था । गांधी एक वकील था। उस समय के अधिकतर नेता वकील ही थे। वे सब जानते थे कि यह सम्पूर्ण स्वतन्त्रता नहीँ, अपितु अल्पकालिक स्वतन्त्रता है। जी हाँ अल्पकालिक स्वतन्त्रता !

यह छद्म स्वतन्त्रता ही थी इससे अधिक और कुछ नहीं। सत्ता का हस्तांतरण हुआ था।

अर्थात् सत्ता तो अंग्रेजों के पास ही रहेगी और उनकी देखरेख में शासन की व्यवस्था सम्भालेंगे आत्मा से बिके और चरित्र से गिरे हुए कुछ लोग।

सत्ता के इस हस्तान्तरण का साक्षी बना “Transfer of Power Agreement ” जो कि लगभग 4000 पेजों में बनाया गया था और जिसे अगले 50 वर्षों हेतु सार्वजनिक न करने का नियम भी साथ में लागू किया गया ।

सन् 1997 में इस Agreement को सार्वजनिक होने से बचाने हेतु समय से पहले ही तत्कालीन प्रधानमन्त्री
श्री इन्द्र कुमार गुजराल ने इसकी अवधि 20 वर्ष और बढ़ा दी और यह 2019 तक पुन: सार्वजनिक होने से बच गया।

ऐसे सत्ता के हस्तान्तरण के Agreements ब्रिटिश सरकार के अधीन भारत समेत समस्त 54 देशों के हैं साथ हुए हैं,

जिनमें आस्ट्रेलिया, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका, न्यूजीलैंड, श्रीलंका, पाकिस्तान आदि 54 देश हैं।

यह 54 देश ब्रिटिश राज के उपनिवेश कहलाते हैं।

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