गालिब की शेरवानी
दिन का समय था। मिर्जा गालिब ने शेरवानी उठाई और मस्जिद
की ओर चल दिये। मार्ग में एक सायेदार वृक्ष देखा। वे सुस्ताने के लिए
बैठ गये।शेरवानी एक टहनी पर लटकायी। थकेमांदे तो थे ही, झपकी
आ गयी।
उधर एक रात का शरीफ आया। उसने देखा कि मुसाफिर बेखबर
सोया पड़ा है। उसने शेरवानी उतारी और चलता बना। मिर्जा की नींद
खुली तो क्या देखते हैं कि कोई रात का शरीफ दिन में ही उनकी
शेरवानी उड़ा ले गया है। वे मुस्कराये और सहसा उनके मुंह से
निकल गया :
'न लुटता दिन को तो कब रात में मैं बेखबर सोता,
रहा खटका न चोरी का दुआ देता हूं रहजन को।
ईश्वर! तू चोर की उम्र लम्बी करउसने मुझे दिन में लूट ही लिया
है। अब कम से कम रात को तो पैर फैलाकर सोऊंगा।
Dhanywaad
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