मिट्टी के नीचे दबा एक बीज अपने खोल में आराम से सो रहा था . उसके बाकी साथी भी अपने अपने खोल में सिमटे पड़े हुए थे . तभी अचानक एक दिन बरसात हुई, जिससे मिट्टी के ऊपर कुछ पानी इकट्ठा हो गया और सारे बीज भीगकर सड़ने लगे . वह बीज भी तर -बतर हो गया और सड़ने लगा .
बीज ने सोचा , ”इस तरह तो मैं एक बीज के रूप में ही मर जाऊंगा . मेरी हालत भी मेरे दोस्तों की तरह ही हो जाएगी , जो अब ख़त्म हो चुके हैं . मुझे कुछ ऐसा करना चाहिए कि मैं अमर हो जाऊं .” बीज ने हिम्मत दिखाई और पूरी ताकत लगाकर अपना खोल तोड़कर खुद एक पौधे के रूप में परिवर्तित कर लिया . अब बरसात और मिट्टी उसके दोस्त बन चुके थे और नुकसान पहुँचाने की जगह बड़े होने में उसकी मदद करने लगे . धीरे–धीरे वह बड़ा होने लगा . एक दिन वह स्थिति आई जब वह इतना बड़ा हो गया कि अब और नहीं बढ़ सकता था। उसने मन ही मन सोचा , इस तरह यहाँ खड़े-खड़े मैं एक दिन मर जाऊँगा , पर मुझे तो अमर होना है. और ये सोचकर उसने खुद को एक कली के रूप में परिवर्तित कर लिया।
कली बसंत में खिलने लगी , उसकी खुशबू दूर-दूर तक फ़ैल गयी जिससे आकर्षित हो कर भँवरे वहां मंडराने लगे , इस प्रकार इस पौधे के बीज दूर-दूर तक फ़ैल गए और वह एक बीज जिसने परिस्थितियों के सामने हार न मानकर खुद को खुद को परिवर्तित करने का फैसला किया था , दुबारा लाखों बीजों के रूप में जीवित हो गया .
परिवर्तन को एक घटना की तरह नहीं , बल्कि एक प्रक्रिया की तरह देखना चाहिए . यह नयी खोज की तरह होता है . यह हमारे वातावरण को ही नहीं , बल्कि हमें भी बदलता है . हम विकास की नयी संभावनाओं को देखने लगते हैं और परिवर्तन में सक्षम होते हैं . यह हमें मिटने की जगह मजबूत बनाता है और हम प्रगतिशील हो जाते हैं .
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