बाल कृष्णा कविता और भजन | Bal Krishna Kavita aur Bhajan

in krishna •  6 years ago 

Krishna Janmashtami
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Poem on Bal Krishna in Hindi

Poem on Bal Krishna in Hindi – कृष्ण का बाल लीला का बड़ा ही मनोहारी वर्णन सूरदास जी ने किया हैं. सूरदास की रचनाएँ पढ़कर ऐसा लगता है कि वे अंधे थे ही नहीं. कृष्ण की बाल लीला हृदय को परम आनन्द से भर देता है. इस पोस्ट में भगवान् कृष्ण की कुछ कवितायें और भजन दिए गये हैं जिसे हिंदी साहित्य के महान कवियों ने लिखा हैं.

हरि पालनैं झुलावै | Poem on Krishna Janmashtami in Hindi
जसोदा हरि पालनैं झुलावै।
हलरावै दुलरावै मल्हावै जोइ सोइ कछु गावै॥
मेरे लाल को आउ निंदरिया काहें न आनि सुवावै।
तू काहै नहिं बेगहिं आवै तोकौं कान्ह बुलावै॥
कबहुं पलक हरि मूंदि लेत हैं कबहुं अधर फरकावैं।
सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि करि करि सैन बतावै॥
इहि अंतर अकुलाइ उठे हरि जसुमति मधुरैं गावै।
जो सुख सूर अमर मुनि दुरलभ सो नंद भामिनि पावै॥

कवि – सूरदास

बसों मेरे नैनं में नन्दलाल | Short Hindi Poems on Lord Krishna
बसों मेरे नैनं में नन्दलाल॥

मोहनी मुरती सवाली सुरती,
नैना बने विसार,
अधर सुधारस मुरली राजत॥
पुर बेजंती माल,
बसों मेरे नैनं में नन्दलाल.

शुद्र घटी काय कटी तात शोबित,
नुपुर सब दरसाए,
मीरा प्रभु संततन सुख दाई,
भगत बचाल गोपाल,
बसों मेरे नैनं में नन्दलाल.

मैया मोरी मैं नहीं माखन खायों | Krishna Ki Bal Leela Poem in Hindi
मैया मोरी मैं नहिं माखन खायो |

भोर भयो गैयन के पाछे, मधुवन मोहिं पठायो ।
चार पहर बंसीबट भटक्यो, साँझ परे घर आयो ॥

मैं बालक बहिंयन को छोटो, छींको किहि बिधि पायो ।
ग्वाल बाल सब बैर परे हैं, बरबस मुख लपटायो ॥

तू जननी मन की अति भोरी, इनके कहे पतिआयो ।
जिय तेरे कछु भेद उपजि है, जानि परायो जायो ॥

यह लै अपनी लकुटि कमरिया, बहुतहिं नाच नचायो ।
‘सूरदास’ तब बिहँसि जसोदा, लै उर कंठ लगायो ॥

कवि – सूरदास

मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई | Best Poem on Janmashtami in Hindi
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई॥
जाके सिर है मोरपखा मेरो पति सोई।
तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई॥
छांड़ि दई कुलकी कानि कहा करिहै कोई॥
संतन ढिग बैठि बैठि लोकलाज खोई॥
चुनरीके किये टूक ओढ़ लीन्हीं लोई।
मोती मूंगे उतार बनमाला पोई॥
अंसुवन जल सींचि-सींचि प्रेम-बेलि बोई।
अब तो बेल फैल गई आणंद फल होई॥
दूध की मथनियां बड़े प्रेम से बिलोई।
माखन जब काढ़ि लियो छाछ पिये कोई॥
भगति देखि राजी हुई जगत देखि रोई।
दासी मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही॥

कवि – मीराबाई

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