Name ~ Aryabhatta
Time ~ 473 - 550 years
Location of Ashmak district of Maharashtra state of present India
Contribution ~ mathematics
1- the local system and zero
2-The form of irrational
3- Mensuration and trigonometry
4- uncertain equation
5- Algebraic Operations
~ Astronomy
1- Solar systems and planets movements
2- Accurate details of eclipses
3- Period of constellation
4- Centrality of the Sun
5- Planetary move and satellite
~ Astrological calculations
Astrology was very advanced in the era of Aryabhatta in India, but Aryabhatta was a unique contributor to it.
Book of Aryabhatiya, Aryabhata, π exploration
In Aryabhata's astronomical exploration, influenced the prevailing ideology of many cultures. At that time, Aryabhatta had proved that the earth is round, and rotates on its axis. At that time, many cultures of the world considered the earth to be flattened and believed that the earth is stable and the sun revolves around it.
Aryabhatta is considered to be the father of trigonometry. He created the sign and versine tables from 0 degrees to 90 degrees at the subtlety of four decimal places at 3.75 degree intervals.
The date calculation of Aryabhatta Panchang or Hindu calendar (calendar) is not only current but also meaningful.
The contribution you made to that era was unique. By the present tense, there are no alternatives in the world in astronomy, triangle, mathematics and astrology.
In your honor, India named your first satellite named Aryabhatta.
The name of research center near Nainital in India for research in astronomy, astrophysics, and atmospheric science was also named as Aryabhata Observational Science Research Institute under the name of this.
We are proud of the Asian people, on the very basis of great personalities like you, we have been in the position of World Guru.
Information- Google or other sources.
नाम ~ आर्यभट्ट
समय ~ लगभग 473 - 550 इश्वी
स्थान ~ वर्तमान भारत का महाराष्ट्र राज्य का अश्मक जनपद
योगदान ~ गणित
1- स्थानियमान प्रणाली और शून्य
2- अपरिमेय के रूप
3- क्षेत्रमिति और त्रिकोणमिति
4- अनिश्चित समीकरण
5- बीजगणितीय संक्रियाएँ
~ खगोल विज्ञान
1- सौरप्रणाली और ग्रहों की गतियां
2- ग्रहणों का सटीक विवरण
3- नक्षत्रो का आवर्तकाल
4- सूर्य की केन्द्रीयता
5- ग्रहों की चाल व उपग्रह
~ ज्योतिषीय गणना
ज्योतिष विज्ञान भारत मे आर्यभट्ट से पूर्व काल मे भी बहुत उन्नत था, किन्तु आर्यभट्ट का इसमें अद्वितीय योगदान रहा।
ग्रन्थ ~ आर्यभटीय, आर्यभट सिद्धांत, π का अन्वेषण
आर्यभट्ट के खगोल में अन्वेषण में अनेक संस्कृतियों की प्रचलित विचारधाराओ को प्रभावित किया। उस समय मे आर्यभट्ट ने ये साबित किया था, कि पृथ्वी गोल हैं, ओर अपनी धुरी पर घूमती हैं। उस समय विश्व की अनेक संस्कृतिया पृथ्वी को चपटा मानती थी और ये मानती थी कि पृथ्वी स्थिर हैं, सूर्य इसके चक्कर लगाता हैं।
आर्यभट्ट को त्रिकोणमिति का जन्मदाता माना जाता हैं। इन्होंने साइन और वरसाइन तालिकाओं को 0 डिग्री से 90 डिग्री तक 3.75 डिग्री अंतरालों में चार दशमलव स्थानों की सूक्ष्मता तक निर्मित किया।
आर्यभट्ट की तिथि गणना पंचांग अथवा हिन्दू तिथिपत्र ( कलेंडर ) वर्तमान तक न सिर्फ प्रचलित हैं, बल्कि सार्थक भी हैं।
उस कालखण्ड में आपके द्वारा दिया गया योगदान अद्वितीय था। वर्तमान काल तक इसका कोई विकल्प खगोल, त्रिकोण , गणित व ज्योतिष में विश्व मे कहीं नही हैं।
भारत ने आपके सम्मान में अपने प्रथम उपग्रह का नामकरण आर्यभट्ट के नाम से किया।
खगोल विज्ञान, खगोल भौतिकी, ओर वायुमण्डल विज्ञान में अनुसंधान के लिए भारत मे नैनीताल के निकट अनुसन्धान केंद्र का नाम भी इन्ही के नाम से आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान अनुसन्धान संस्थान रखा गया।
हम एशियावासियो को आप पर गर्व हैं, आप जैसी महान हस्तियों के बूते पर ही हम विश्व गुरु के पद पर आसीन रहे।
जानकारी ~ साभार google or अन्य श्रोत।
आपका ~ indianculture1
Posted using Partiko Android
This post has received a 5.33 % upvote from @boomerang.
Downvoting a post can decrease pending rewards and make it less visible. Common reasons:
Submit