किसानों से वायदा निभाया लेकिन आधा अधूरा

in mgsc •  6 years ago 

आखिर मोदी सरकार ने खरीफ की फसलों के लिए समर्थन मूल्य बढ़ा ही दिया. धान का एमएसपी तो दस साल बाद 200 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ाया गया है . उससे ही सरकार को इस साल 12 हजार तीन सौ करोड़ रुपये ज्यादा खर्चने पड़ेंगे . इसी तरह जिन अन्य फसलों का एमएसपी बढ़ाया गया है उससे सरकरा के राजस्व पर कुल मिलाकर तीस हजार करोड़ की चपत लगेगी. यह सब सच है. किसानों को कुछ हद तक राहत भी मिलेगी यह बात भी हकीकत है लेकिन सरकार का दावा है कि एमएसपी बढ़ाकर उसने स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों को मंजूर कर लिया है और किसानों को लागत का डेढ़ गुना यानि एमएसपी पर पचास फीसदी मुनाफा मिलने लगा है . यह दोनों ही दावे गलत और भ्रामक हैं. इसके लिए हम चार फसलों की चर्चा करते हैं.


सबसे पहले धान. धान और गेंहूं ही ऐसी दो फसलें हैं जिनकी वास्तव में सरकारी खऱीद होती है. हर साल सरकार करीब पांच करोड़ टन धान और लगभग इतनी ही मात्रा में गेहूं की सरकारी खऱीद एमएसपी पर करती है. धान का एमएसपी चुनावी साल में 200 रुपये बढ़ाया गया है. इससे पहले 2008-09 में मनमोहन सिंह सरकार ने उस समय चुनावी साल में 155 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाया था. लेकिन मोदी सरकार एमएसपी बढ़ाकर भी धान उगाने वाले किसानों को लागत का डेढ़ गुना या एमएसपी पर पचास फीसदी मुनाफा नहीं दे रही है. ऐसा इसलिए क्योंकि सरकार ने लागत का आधार ए टू प्लस एफ एल रखा है जबकि स्वामीनाथन कमेटी के अनुसार लागत का आधार सी टू होना चाहिए. आगे कुछ कहने से पहले इनका मतलब समझ लेते हैं. दरअसल एमएसपी कृषि लागत और मुल्य आयोग तय करता है. इसके दो तरीके होते हैं. एक, ए टू प्लस एफ एल-इसमें खेती की लागत यानि बीज, खाद, कीटनाशक, सिंचाई, डीजल, बिजली, बुआई और कटाई की मजदूरी, उपज मंडी ले जाने के किराए के साथ साथ खुद किसान और उसके परिवार की मजदूरी शामिल होती है. दो- सी टू. इसमें ए टू प्लस एफ एस के आलावा जमीन का किराया, ट्रैक्टर और अन्य उपकरणों का किराया और ब्याज शामिल होता है. आमतौर पर सी टू की कीमत ए टू प्लस एफ एल से करीब 38 फीसदी ज्यादा होती है.

अब हम देखते हैं धान के एमएसपी को. पिछले साल धान का ए टू प्लस एफ एल 1117 रुपये प्रति क्विंटल था. एमएसपी 1550 रुपये था. यानि किसान को ए टू प्लस एफ एल से 38 फीसदी ज्यादा पहले से ही मिल रहा था. यह 200 रुपये की बढ़ोतरी के बाद करीब पचास फीसदी ज्यादा होकर 1750 रुपये हो गया है. लेकिन मोदी सरकार ने तो संपूर्ण लागत पर पचास फीसदी ज्यादा देने का वायदा किया था जिसे सू टू कहा जाता है . धान की बात करें तो सू टू 1484 रुपए प्रति किंवटल पिछले साल था जिसपर पचास फीसदी से ज्यादा के हिसाब से किसान को 2226 रुपये मिलने चाहिए लेकिन उसे मिलेंगे 1750 रुपये. इसी तरह मोदी सरकार ने ए टू प्लस एफ एल पर पचास फीसदी ज्यादा एमएसपी तय की है जो एक तरह से किसानों को आंकड़ेबाजी के खेल में गुमराह ही कर रही है. क्योंकि आज की तारीख में जिन 23 जिंसों पर एमएसपी तय की जाती है उनमें से चौदह पर किसानों को ए टू प्लस एफ एल से पचास फीसदी ज्यादा एमएसपी मिल ही रहा है. गेंहू पर यह 112 फीसदी ज्यादा है.

चने पर 78 फीसदी, दाल पर 79 फीसदी और सरसों पर 88 फीसदी ज्यादा है. इस तरह सरकार ने कुछ भी नया या अनोखा नहीं किया है.

हम मूंग की बात करें तो इसका ए टू प्लस एफ एल 4286 रुपये प्रति क्विंटल हैं और सी टू 5700 रुपये है. पिछले साल मूंग का एमएसपी 5575 रुपये प्रति किवंटल था जो ए टू प्लस एफ एल से करीब 25 फीसदी ज्यादा था. इस बार इसे बढ़ाकर 6975 रुपये प्रति क्विंटल किया गया है. जो ए टू प्लस एफ एल से साठ फीसदी से भी ज्यादा है लेकिन अगर सी टू को आधार मानकर एमएसपी निकाली जाती तो किसानों को 8500 रुपये प्रति क्विंटल मिलने चाहिए थे. जाहिर है कि मूंग में भी स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिश नहीं पूरी हुई है. अब बात करते हैं उड़द की. इसका ए टू प्लस एफ एल 3265 था और सी टू था 4517. पिछले साल उड़द का एमएसपी 5400 रुपये था. इस बार एमएसपी 5600 किया गया है लेकिन अगर सी टू को लागत का आधार माना जाता जिसका वायदा बीजेपी ने अपने 2014 के चुनावी घोषणा पत्र में किया था तो उड़द का एमएसपी 6775 रुपये होना चाहिए था. इसी तरह ज्वार का ए टू प्लस एफ एल 1556 था और सी टू 2089. पिछले साल एमएसपी 1700 था जिसे इस बार बढ़ाकर 2430 रुपये किया गया है लेकिन सी टू को आधार बनाने पर यह तीन हजार पार होता.

कुल मिलाकर सरकार ने किसानों के गुस्से को कम करने की कोशिश की है. कुछ महीनों बाद राजस्थान और मध्यप्रदेश में विधान सभा चुनाव होने हैं जहां किसान सड़कों पर उतर चुके हैं. एमपी में तो पिछले साल पुलिस की गोली से छह किसान मारे भी गये थे. इन विधानसभा चुनावों के बाद लोकसभा चुनावों का सामना सरकार को करना है. देश में करीब 12 करोड़ किसान है और अगर एक किसान परिवार में चार वोटर भी माने जाएं तो यह आंकड़ा 48 करोड़ का बैठता है. इतने बड़े नाराज वोटबैंक को खुश करने के लिए सरकार तीस हजार करोड़ रुपए का बोझ उठा रही है. इस पर भी किसान खुश नजर नहीं आ रहा है उसे लग रहा है कि सरकार ने वायदा करने के बाद भी स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिश लागू नहीं करके वायदाखिलाफी की है. एक दूसरा डर यह है कि एमएसपी बढ़ाने से अगर महंगाई दर में इजाफा होता है तो रिजर्व बैंक ब्याज दरों को कम करने से इनकार कर सकता है जिससे मध्यवर्ग खफा हो सकता है.

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