कश्मीर(जम्मू कश्मीर) का बदला हुआ नरेटिव और उसके मायने

in mgsc •  6 years ago 

बहुत लंबा लेख है और कई दिनों में पूरा हुआ है। इस लेख को वो लोग ही पढ़े जो जिज्ञासु हों। नकरात्मक व नोटा वालों के लिये पढ़ना निषेध है।

आज के भूमंडलीकरण के दौर मे, विश्व को प्रभावित करने वाली घटनाओ या समस्याओं और उसके लिये किये गये प्रयासो मे सबसे महत्वपुर्ण तत्व उसकी पृष्ठभूमि का कथानक या नरेटिव होता है। यह नरेटिव या तो उस घटना/समस्या के नेपथ्य से स्वतः स्फुरित होता है या फिर इसको दीर्घकालीन योजना के तहत स्थापित किया जाता है। जितनी उलझी समस्या होती है उतना ही जटिल उसको सुलझाने की प्रक्रिया भी होती है और उसमे सबसे महत्वपुर्ण वर्तमान के नरेटिव को बदल कर, समस्या के स्थायी हल के लिये, नये नरेटिव को स्थापित करना होता है।

यह कथानक या नरेटिव कितना महत्वपूर्ण होता है यह इस बात से समझा जासकता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति बुश ने संयुक्तराष्ट्र संघ की स्वीकृति से इराक पर मित्र राष्ट्रों के साथ आक्रमण कर के न सिर्फ इराक को बर्बाद कर दिया बल्कि उसके राष्ट्रपति सद्दाम को फांसी पर लटकवा दिया था। इस पूरी घटना के पीछे सिर्फ एक ही नरेटिव था और वह था विश्व का यह मान लेना कि सद्दाम के पास वेपन ऑफ मास डिस्ट्रैक्शन है। इस उदाहरण को देने के पीछे मेरा आशय यह है कि कथानक या नरेटिव सत्य है या असत्य है यह महत्वपूर्ण नही होता है बल्कि उसका परिणाम महत्वपूर्ण होता है।

आज कल तो विशेषज्ञों ने इस नरेटिव की स्थापना को 5th जनरेशन वॉर फेयर के महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में स्वीकार कर लिया है। यदि इसको भारत के परिपेक्ष में देखे तो यह हम 1940 से ही देख रहे है। आखिर पाकिस्तान बना कैसे था? यह सही है कि तत्कालीन ब्रिटिश शासन ने इसको बनने दिया था लेकिन 1947 के बंटवारे का नरेटिव मुस्लिम लीग के जिन्नाह ने 1940 से ही स्थापित करना शुरू कर दिया था और तब कोई भी इस बात को समझ नही पाया था। जिन्नाह ने मुस्लिम लीग की प्रदेशीय चुनावो में हार के बाद बड़ी होशियारी से, भारत मे 'मुसलमान खतरे में है' के नारे को 'इस्लाम खतरे में है' बदल दिया था और भारत के बंटवारे को स्थायी बना दिया था।

भारत ने स्वतंत्रता के बाद जिन समस्याओं से संघर्षरत हुआ है और उसको जिस चश्मे से देखा या समझा है, वह सब कांग्रेस व वामियों द्वारा स्थापित किये गये नरेटिव की बैसाखियों के सहारे देखा है। इसका परिणाम यह हुआ है कि आज भी भारत की ज्यादातर जनता सत्य को देखने व समझने से दिव्यांग हो चुकी है। मेरे लिये इसका सबसे प्रत्यक्ष प्रमाण कश्मीर है। भारत की 99% जनता आज भी जम्मू कश्मीर को कश्मीर कहती है और पिछले 7 दशकों में अंतराष्ट्रीय पटल पर कश्मीर की घाटी के अलगावाद और आतंकवाद को सम्पूर्ण जम्मू कश्मीर के रूप में परिभाषित किया जाता है। जम्मू कश्मीर राज्य के 5 शहरों के उपद्रवियों को सम्पूर्ण जम्मू कश्मीर के अलगावाद के रूप में परिभाषित किया गया है। यह गलती मैं भी करता रहा हूँ जब तक जम्मू कश्मीर स्टडी सर्किल से नही जुड़ा था। शेष भारतीयों की तरह मैं भी जम्मू कश्मीर में धारा 370 का बना रहना, कश्मीर की घाटी से उपजी समस्या से निपटने में व्यधान समझता रहा हूं। यह नरेटिव है क्योंकि जम्मू कश्मीर का हिन्दू स्वयं धारा 370 को हटाने का समर्थक नही है और यही कारण है कि आज कोई भी पोलटिकल विल उसे नही हटा सकती है। कश्मीर की घाटी की समस्या जहां, वहां के मुसलमानों का 80 के दशक से कट्टरपंथी तत्वों से जुड़ना और पाकिस्तान परस्त अभिजात वर्ग के कारण उलझी है वही जम्मू के हिन्दुओ द्वारा धारा 370 के सुख से वंचित न हो जाने के कारण भी है।

अब इसी पृष्ठभूमि में मैं आज की मुख्य बात को कहूँगा। आज 2014 के मोदी के समर्थको में से, उनके विरोधी बने 90% हिंदूवादी व राष्ट्रवादी का द्वारा मोदी जी की व्यक्तिगत आलोचना करने व इन लोगो द्वारा नोटा के समर्थन में लेखन करने के मुख्य कारणों में कश्मीर(जम्मू कश्मीर) है। यह सब वह लोग है जिन्होंने गूगल सर्च व मोटी मोटी किताबो से बाहर न कदम रक्खा है और न ही कश्मीर की घाटी में प्रवास किया है। हालांकि दो वर्ष पूर्व तक मैं भी इन्हीं लोगो मे शामिल था लेकिन जब जम्मू कश्मीर स्टडी सर्किल से जुड़ा तो धीरे धीरे वहां की वास्तविकता से मेरा परिचय हुआ है। कश्मीर को लेकर जो नरेटिव भारत की पूर्व सरकारों व मीडिया के माध्यम से वामी इस्लामिक गिरोह ने स्थापित किया था वही नरेटिव अंतराष्ट्रीय पटल पर भी स्थापित था। उनका स्थापित नरेटिव था कश्मीर(जम्मू कश्मीर गायब है)में जो हो रहा है वह आज़ादी का संघर्ष है, संघर्ष करने वाले आतंकवादी नही अलगावादी है, भारत की सेना वहां जुल्म कर रही है, भारत का कश्मीर में अनाधिकृत कब्ज़ा है और पाकिस्तान का कश्मीरी अलगावादियों को भवनात्मक समर्थन है। हम यह बराबर कहते रहे है कि कश्मीर का मामला भारत और पाकिस्तान का मामला है लेकिन सत्यता यही थी कि 7 दशकों में वह अंतराष्ट्रीय मामला बन चुका था। जहां यह अंतराष्ट्रीय मंच पर भारत की दुखती नस थी वही भारत मे भी कई बुद्धजीवियों व वामियों का इस नरेटिव को समर्थन प्राप्त होने के कारण, भारत की कश्मीर(जम्मू कश्मीर) पालिसी दिशाहीन ही रही थी।

यहां यह अवश्य है कि भारत के राष्ट्रवादियों का एक बड़ा वर्ग, इजराइल की तरह, सैन्य कार्यवाही करके कश्मीर की समस्या का अंत करने का पक्षधर रहा है लेकिन यहां लोग यह भूल जाते है कि न भारत इज़राइल है और न ही हिन्दू, यहूदी है। स्थापित नरेटिव की पृष्ठभूमि में, अंतराष्ट्रीय दबाव के विरुद्ध जाकर, यदि आज की सरकार कश्मीर समस्या के समाधान के लिए सैन्य कार्यवाही करती तो वह भारत के लिये धातक होती क्योंकि भारत की बहुसंख्य जनता की उदासीनता व उसकी कर्महीन फल प्राप्त करने की पृवत्ति उसको अंतराष्ट्रीय दबाव के आगे खड़े नही होने देती।

तो फिर मोदी जी की सरकार के पास, कश्मीर की समस्या को जड़ से समाप्त करने के लिए क्या समाधान क्या था?

सरकार के पास सिर्फ एक ही समाधान था कि कुछ भी करने से पहले कश्मीर के नरेटिव को बदल दे, जो बेहद कठिन कार्य था। इसके लिए मोदी जी ने पहले विश्व भर में बड़ी शक्तियों को अपनी आक्रमक कूटनीति द्वारा निष्प्रभावी करने का कार्य किया और फिर कश्मीर के नरेटिव में पाकिस्तान की भूमिका को अलगावादियों को समर्थन देने वाले से, आतंकवादियों का शरणस्थल देने वाला स्थापित किया। जब यह सब स्थापित कर लिया तब धैर्यपूर्वक जम्मू कश्मीर की अलगावादियों (आतंकवादियों) से सहानभूति रखने वाली पार्टी पीडीपी की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को नरेटिव बदलने को बाध्य किया, जिसका संज्ञान न भारत की मीडिया ने लिया और न ही किसी राजनैतिक विश्लेषक ने लिया है लेकिन पाकिस्तान ने इसका संज्ञान लिया है। कश्मीर मामले में पाकिस्तान के राजनैतिक व कूटनैतिक विशेषज्ञों की सोंच भारत के लोगो से आगे की होती है। उसका कारण शायद यह है कि पिछले 4 वर्षों में भारत द्वारा पाकिस्तान को घेरते हुये, उसके अस्तित्व को बनाये रखने वाले सभी आवश्यक तत्वों व कथानक को एक एक करके टूटते हुये वे देख रहे है।

यह नरेटिव बदला कैसे और उसके बदलने से आज पाकिस्तान में सन्नाटा क्यों है इसको समझने की जरूरत है। हुआ यह कि पिछले दिनों महबूबा मुफ्ती ने एक बयान दिया जिसमें उन्होंने कहा कि कश्मीर में जो हो रहा है वह आज़ादी की लड़ाई नही है बल्कि इस्लाम की लड़ाई है। यह कश्मीरियत की लड़ाई नही है बल्कि यहां इस्लाम के नाम पर खून खराबा हो रहा है। पीडीपी की जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री का यह बयान भारत के लोगो के लिए कोई मायने नही रखता है लेकिन यह पाकिस्तान और अंतराष्ट्रीय समुदाय के लिए विशेष मायने रखता है। इस बयान ने कश्मीर की आज़ादी की लड़ाई को, जो पाकिस्तान के साथ भारत के राष्ट्रद्रोहियों का भी नरेटिव था, वह इस्लाम की लड़ाई बन गया है। कश्मीर के नरेटिव का यह बदलाव पाकिस्तान के लिये खतरे की घण्टी बन गया है। आज वह यह समझ गया है कि भारत पाकिस्तान पर सीधे कोई कार्यवाही न करके, अमेरिका की अगुवाई में अन्य इस्लामिक आतंकवाद से पीड़ित राष्ट्रों को पाकिस्तान पर संयुक्त कार्यवाही के लिये आमंत्रित कर रहा है। डॉलर के आगे टूटते पाकिस्तानी रुपये और आर्थिक कंगाली के कगार पर बैठा पाकिस्तान आज पानी की किल्लत, पेट्रोल की कमी, बलोचिस्तान व पश्तो इलाको में विद्रोह से घिर गया है और उसकी आंतरिक पकड़, हथेली में रेत की तरह फिसलती जारही है।

आज इस्लामिक कट्टरपंथियों के कारण जलते सीरिया की लौ, अब पाकिस्तान को अपने यहां महसूस हो रही है। आज उसका वास्तविक डर, इंटरनेशनल मॉनेटरी फण्ड से मिलने वाले लोन की शर्त में उसके परमाणु संयत्रों को गिरवी रखने के शामिल होने को है। आज उसका डर, पाकिस्तान का अफगानिस्तान बन जाने का है।

मैं इस पर और भी लिख सकता हूँ लेकिन बदले नरेटिव छोटे में समझाने के लिये दो वीडियो डाल रहा हूँ। एक पाकिस्तान के प्रसिद्ध कट्टरपंथी राजनैतिक विश्लेषक ओरया मकबूल ज़ान का है और दूसरा कश्मीर की घाटी में परसो 'आज़ादी' के नारे लगाती भीड़ के बीच घाटी के मुसलमानों द्वारा भारत माता की जय के नारे के है, जहां जय कहने वालों ने आज़ादी के नारे लगाने वालों पर एफआईआर दर्ज की है।

मेरा मानना है कि मोदी सरकार की कश्मीर पालिसी अपना रंग दिखाने लगी है और वहां की समस्या का समाधान अपने अंतिम चरण में प्रवेश कर चुका है #जोगेन्द्र चौधरी

Authors get paid when people like you upvote their post.
If you enjoyed what you read here, create your account today and start earning FREE STEEM!
Sort Order:  

Hi! I am a robot. I just upvoted you! I found similar content that readers might be interested in:
https://www.facebook.com/groups/grefpersonaldiary/