पुलिस पर कई बार सवालिया प्रश्न उठते है फिर भी पुलिस प्रशासन अपनी कार्य शैली में कोई बदलाव नहीं लाते ऐसे ही कई मामले देखने को मिलते है जिसमे पुलिस प्रशासन की हीलाहवाली व रिस्तेदारी के कारण आरोपी खुलेआम 56 इंच का सीना चौड़ा करके घूमते हुए नजर आते है । जिसके चलते हर चौकी ,थानों में लंबित विवादों की लंबी कतार भी देखने को मिलती है । बताते चले सत्ता की खनक में संरक्षण प्राप्त पुलिस वाले सारे अवैध व्यापार भी चलवा रहे है, और तो और नो एन्ट्री में भी होमगार्ड से लेकर सिपाही व ट्रैफिक पुलिस वाले भी छोटी सी रकम लेकर बड़े वाहनों की एंट्री करा देते है जिसके चलते जाम जैसी स्थिति का सामना करना पड़ता है और गंभीर दुर्घटनाओं का भी । जिससे कई बेकसूर जाने चली जाती है और उधर देखा जाए तो जिन आरोपियों को पुलिस का संरक्षण प्राप्त होता है वो खुलेआम अभद्रता के साथ चुनोतियाँ व छूट पुट घटनाओ के साथ पीड़ित को व उसके परिवार को मानसिक या शारीरिक यातनाये भी देते है और जब पीड़ित अपनी मदद के लिये चौकी, थाने में जाता है तो तामाम सवालों के कटघरे में खड़ा कर खाकी लिबास पहने कहे जाने वाले हमारे रक्षक ही गिद्द, भेडियो की तरह अभद्रता के साथ पीड़ित से ही रुपये कमाने की जुगाड़ में लग जाते है और जब पीड़ित द्वारा कुछ नही मिलता तो पीड़ित को वहाँ से डरा धमकाकर भागा दिया जाता है और पूरे मामले को विपक्ष से मिलकर मोटी रकम लेकर रफा दफा कर देते है ।उसके बाद भी पीड़ित न्याय के लिये न्यायालय का दरवाजा खटखटाता है तो कही कुछ समय के उसे चैन की रहत मिलती है परन्तु उसके बाद जब मामला न्यायालय द्वारा विवेचना के लिए थाने में आता है तो थानेदार साहब अपनी बर्दी का रुतवा दिखते हुए पीड़ित को ब्यान के लिए ही बुलाते है और सारे गवाहों की गवाही अपने बुद्धि विवेक के साथ अपनी कलम से ही लिख देते है न ही घटना स्थल का जायजा करते है और मामले की गलत विवेचना कर ,मामले को खत्म कर देते है विपक्ष के सहियोग से । उसके बाद निर्दोष पीड़ित व्यक्ति को सत्ता की खनक,बर्दी की पॉवर के चलते तामाम फर्जी केसों में फसकर बना दिया जाता है अपराधी।
आप सभी अपनी राय जरुर दे आप का दोस्त
हिमांशु सिंह