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एक मधुमक्खी और तितली दोनों एक गुलाब के फूल पर बैठा करते । तितली अपने लिए पराग इकट्ठा करतीं और मधुमक्खी अपने लिए । इसी तरह कुछ दिन बीत गए।कुछ दिन बाद आधिपत्य की लड़ाई शुरू हो गई। तितली ने कहा इस फूल पर मेरा अधिकार है , मधुमक्खी ने कहा मेरा । " तू-तू , मै- मै , वाद-विवाद " बढ़ता चला गया। जीवन में भी जितनी लड़ाईयां है , सबकी सब वर्चस्व और अधिकार की लड़ाईयां है ।मधुमक्खी या तितली कभी किसी को पराग की कमी नही हुई , सबका पेट भरता था , किन्तु अधिकार और वर्चस्व की चाह तो विवेक को समाप्त कर देती है ।
जब दोनों ' तू-तू , मै- मै ' से थक गए दोनों ने फैसला किया कि चलो फूल से भी पूछ लेते है । दोनों फूल के पास पहुँची । दोनों अहंकार में थी।तितली अपने रूप-रंग पर इतरा रही थी तो मधुमक्खी को अपने डंक पर गुमान था । फूल ने दोनों की बात सुनी । फैसला मधुमक्खी के पक्ष में सुनाया । तितली कुद्ध हो गई ।कहने लगी मधुमक्खी मुझसे श्रेष्ठ कैसे हो सकती है । मै सुन्दर हूँ , मेरे रूप रंग को देख सभी ललचाते है । सभी के आकर्षण का केन्द्र हूँ ।मधुमक्खी कुरूप है , डंक से पीड़ा भी पहुँचाती है ,
फूल शांत भाव से सबकी बातें सुन रहा था । उसने कहा- जीवन में जो लोग अपने रूप रंग से संसार को अपना करना चाहते है वे चूक जाते है । समाज रूप की नही , गुणों की पूजा करता है ।शक्तिहीन होना , डंक विहीन होना भी कोई विशेषता नही है ।संसार में 'रूप नही गुण' बड़ा है ।मधुमक्खी कुरूप तो है , किन्तु देखो- तुम दोनों यहाँ से पराग अपना भोजन लेकर जाती हो ।तितली केवल अपना पेट भरती है , किन्तु मधुमक्खी अपना पेट भी भरती है और दुसरों का भी ।वह समाज के लिए मधु एकत्र करती है ।समाज को मिठास देती है ।अपना पेट तो सभी भरते है , बड़प्पन उनका है जो समाज को कुछ देने का प्रयत्न करते है।मधुमक्खी इसलिए बड़ी है कि उसने समाज को कुछ दिया है ।
दुनिया में वे ही लोग पूजे जाते है और उनका ही जीवन सफल है , जो समाज को देने का प्रयत्न करते है ।संसार में जो लोग तितली की भाति जीयेंगे वे चूक जाएंगे जो मधुमक्खी की की भाँति जीएंगे वे सफल होंगे।