अरे हाजियों तुम हरम जा रहे हो
बसद एहतेराम एक पयाम अर्ज़ करना
मज़ारे मुक़द्दस पे जब हाज़री हो
मेरा भी नबी से सलाम अर्ज़ करना
ये कहना के एक उम्मती बेसहारा
है बेचैन वो दर्दे फुरकत का मारा
ये कहना मदीने से वो दूर रह कर
फिरे दर बदर सुब्हो शाम अर्ज़ करना
अरे हाजियों तुम हरम जा रहे हो
बसद एहतेराम एक पयाम अर्ज़ करना
तड़पता है दिल और बरसती हैं आँखें
बराए ज़ियारत तरसती हैं आँखें
ये कहना बसारत से महरूम है वो
मेरी हालते गम तमाम अर्ज़ करना
मज़ारे मुक़द्दस पे जब हाज़री हो
मेरा भी नबी से सलाम अर्ज़ करना
ये कहना गुनाहगारो बदकार है वो
खताओं पे लेकिन शर्मसार है वो
निगाहे करम का तलबगार है वो
पिलादो महोब्बत का जाम अर्ज़ करना
मज़ारे मुक़द्दस पे जब हाज़री हो
मेरा भी नबी से सलाम अर्ज़ कर
हो मक्के से तयबह की जानिब रवाना
हो दिल आशिकाना नज़र आरिफाना
अदब से सरे राह पलकें बिछाना
अकीदत से फिर तुम सलाम अर्ज़ करना
अरे हाजियों तुम हरम जा रहे हो
बसद एहतेराम एक पयाम अर्ज़ करना
ये कहना उसे एक ही धुन लगी है
सदा उसके होठों पे नाते नबी है
बुलावे का वो मुन्तज़िर है खुदारा
उसे भी मिले इज़्ने आम अर्ज़ करना
अरे हाजियों तुम हरम जा रहे हो
बसद एहतेराम एक पयाम अर्ज़ करना
हो नज़रों में जब सब्ज़ गुम्बद की जाली
लबों पर सजी हो दुरूदों की डाली
तो उस वक़्त कहना परेशान है आक़ा
वो मोहसिन तुम्हारा गुलाम अर्ज़ करना
अरे हाजियों तुम हरम जा रहे हो
बसद एहतेराम एक पयाम अर्ज़ करना