आज के दौर में कुछ ऐसा देखा मैंने, बड़े मकानों में छोटे दिल वाले रहते है और छोटे मकानों में बड़े दिलदार रहते है। बड़े को अपनी ताक़त, दौलत का गुमान है तो छोटो को अपने सम्मान का स्वाभिमान। सभी आये एक ही छत से है जाना भी उसी छत में है फिर आंखों में ये अंधकार कैसा? हम सत्य को स्वीकार क्यू नही कर पा रहे है, और सत्य यह है कि हमारा जन्म परमात्मा की असीमित सत्ता को स्वीकारना है, हमारा जीवन मिट्टी के महल, और पानी के बुलबुले से भी कई गुना छोटा है कब, किस पल ढेर हो जाये हम ये भी नही जानते, फिर इतना अंहकार, कैसा? दोस्तों जीवन को जितना तरल और सरल रखोगे उतना ही आसान हो मंजिल का सफ़र। जिस प्रकार नदी का पानी बिना किसी का विरोध किये निरंतर बहता जाता है और सागर में जा मिलता है, हमें भी जीवन को बड़ी सरलता पूर्वक बिना किसी को कष्ट दिए परमात्मा की ओर प्रेम मार्ग से निरंतर चलना है हम भी उसी में विलीन हो जाएंगे, याद रखो! हमारे द्वारा यदि किसी को भी चाहे वह मनुष्य हो, पशु पक्षी हो, जीव जंतु हो, हमारा कर्म सिर्फ बिना स्वार्थ सिद्धि के निष्पक्ष प्रेम के मार्ग में आगे बढ़ना हैं और कुछ भी नही। यही भक्ति है, यही सेवा हैं यही परमेश्वर तक जाने का रास्ता है ...…... मानव की सेवा भक्ति का एक कदम ---
आज का दौर
6 years ago by nikhil12 (43)