भाग्य।
वह कैसे टल सकता है।
जो संचित कर्मों का फल है,
वह कैसे मिट सकता है।
कुछ कर्मों का फल हमको,
जग में तुरंत मिल जाता है।
लेकिन कुछ का फल लम्बित रहता है,
जो जन्मों तक हमें रुलाता है।
जो जैसे कर्म कर रहा है,
उसको वैसा फल मिलता है।
अच्छे कर्मों का फल अच्छा,
दुष्कर्मों से दुःख मिलता है।
कर्मों की स्थिति गुहाय बहुत,
वह कहाँ समझ में आता है।
अनेकों जन्मों के अंतर में भी,
वह पीछा नहीं छोड़ता है।
यदि सुख आनन्द चाहते हो,
सत्कर्म सदा करते रहिए।
सेवा सद्भाव समर्पित कर,
सबकी सेवा करते रहिए।
कर्मों से भाग्य बदलता है,
कर्मों से सुख दुःख मिलता है।
अच्छे सत्कर्मों के बल से,
मानव को ईश्वर मिलता है।