ज़िन्दगी और मैं

in poetry •  6 years ago 

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आज सोच में हूँ और कछ होश में हूँ, ना ख़त्म होने वाली उस खोज में हूँ.....
जहां दरवाज़ा खोलूं तो ज़िन्दगी से मुलाक़ात हो, कुछ खट्टी और कुछ मीठी, मेरी भी बात हो....
बादलों से ढके चाँद की छनती चांदनी भरी रात हो, जो शोर में सुनाई दे, वो मेरी भी आवाज़ हो .....

जब मिलूंगी तुझसे, खूब लड़ूंगी... तेरे दिए दर्द तुझी से कहूँगी...
पूछूँगी तुझसे क्या भूल आयी मुझे तू मजधार या अँधेरे कुए में ....
मजधार से लड़ और रौशनी को पकड़, आज तुझको मैं दिखलाऊँगी ....
इतराऊंगी और तुझसे आज नज़रें मैं मिलाऊँगी..

बंधन भी टूटे, दर्द भी छूटे, तेरे दिए सारे क़र्ज़ भी झूठे...
उधार, ना कोई एहसान तेरा.......आज करुँगी सारा हिसाब तेरा - मेरा .....
सच क्या है आज तुझको मैं बतलाऊँगी, हर उस क़र्ज़ को आज तेरे मैं चुकाऊँगी |
बढ़ा तू ज़ुल्म और भी तेरे, बर्दाश्त की फिर इन्तेहाँ देख मेरे.....
तेरे दिए सब ज़ख्म तुझी से भरवाऊँगी, कसम है ज़िन्दगी, तुझे इस कदर मैं आज हराऊंगी ....

न बहाना सुनूंगी, न मिन्नत करूंगी, आज तुझे यूं मजबूर करूंगी.....
कर दो - दो हाथ तुझे आज घुटनो पर ले आऊंगी.....
बना तू खूब बहाना, कर खूब साज़िश, इन सबको आज सूली पर चढ़ाऊँगी
ज़िन्दगी तुझे आज आजशर्मसार मैं कर जाऊंगी......

न छुप सके तू, न रूठ सके, इस कदर तुझे आज मनाऊंगी, ज़िन्दगी तुझे इस कदर गले मैं आज लगाऊंगी....
ज़िन्दगी ऐ ज़िन्दगी, तुझे मैं आज बाहों में भर, घर ले आऊंगी....

चल ख़त्म करें ये आँख मिचौली, तेरी - मेरी आज खूब हो ली,
हूँ मैं आज तौला और तू मासा, मुझे है ज़िन्दगी जीने की आशा....
चल मिला हाथ, भूलें शिकवे - गीले आज , ज़िन्दगी.. ऐ.. ज़िन्दगी, चल कर लें आज इक दूजे से प्यार !!!

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