खारा पानी

in poetry •  6 years ago 

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छुपाया भी तुझको आंखों में, पलकों में भी जकड के रक्खा...
पुतलियों पर भी फिर तुझको संभाला, मगर तेरा इरादा भी निकला पक्का..
न बात तूने मेरी एक भी मानी, कर ही गया देख, फिर आज मनमानी...
छुपानी थी सबसे जो, कह डाली तूने आज फिर वो कहानी...
रोके न रुका मेरे तू, निकला ऐसा बेईमान पक्का |

और मुझे तू कितना यूं गिरायेगा, कब तक मेरी यूं खिल्ली उड़वायेगा...
लौट आ ये पुकारूँ, लेकिन देर अब हो चली, पलकों से टपक बूँद, खारा पानी बह चली..
फिर सूख गायब उड़ यूं चली, की मुझको तेरी राह न मिली |

देख अबकी बार न करना मनमानी,
बोलूं जो जा, तब ही बस जाना, नहीं तो मेरी पलकों में ही छुप जाना |
मैं ध्यान रखूंगी, पर तू भी सम्भलना...बिना बात युहीं फिर न निकलना...
पलकों की तिजोरी में ही बंद रहना, मिल जुल कर तुझे और मुझको है सहना..
लेकिन जब मन दुःख से चिल्लायेगा, तब ज्वालामुखी सा तू खुद भी फूट चला आएगा....
एक तू मेरा साथी, तू भी बस मुझे अकेला छोड़ बह चला जाएगा...

फिर बैठ कभी फुरसत में सोचूंगी, वो जो गया वो मेरा सानी,
था एक मोती या बहता पानी, बस.........खारा पानी ||

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