WRITTEN BY LOVING BROTHER
आँखों की राह नाला-ए-दिल आबजू हुए ।
ज़ख़्मे-जिगर कहाँ मेरे फिर भी रफ़ू हुए ।
वो बाम तक ही आए ना पैग़ाम ही दिया ,
हम उनकी बज़्म में बड़े बे-आबरू हुए ।
सर कट गया झुका न मज़ालिम के सामने ,
क़ायल मेरी अना के यूँ मेरे उदू हुए ।
अपने लहू की आग ने हमको जला दिया ,
हम भी गुले-खिज़ाँ हुए बेरंग-ओ-बू हुए ।
मुद्दत से राबिता है नहीं ख़ुद से भी मेरा ,
अरसे हुए हैं अब तो तेरी आरज़ू हुए ।
'नादान' जानो-दिल पे है तू जब से छा गया ,
ख़ुशरंग सब नज़ारे मेरे चार सू हुए ।
राकेश 'नादान'
नाला-ए-दिल :----हृदय की शिक़ायत / हृदय की चीख़
आबजू :----नदी
बाम :--- मुंड़ेर
मज़ालिम :----अत्याचार( बहुवचन )
अना :---स्वाभिमान
उदू :----शत्रु
गुले-खिज़ाँ :---पतझड़ का फूल
राबिता :----सम्पर्क