कभी ख़ुद रूठ जाता है, कभी मुझको रुलाता है
हमारा यार पर अक़्सर, हमीं को गुनगुनाता है
मुहब्बत की अगर बारिश, कहीं मुझको भिगोए तो
वहीं आके सनम मेरा, फुहारों में नहाता है
कभी ख़ुद रूठ जाता है, कभी मुझको रुलाता है
हमारा यार पर अक़्सर, हमीं को गुनगुनाता है
मुहब्बत की अगर बारिश, कहीं मुझको भिगोए तो
वहीं आके सनम मेरा, फुहारों में नहाता है