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बिस्तर पर लेटी नीरा छत पर घूमते पंखे की घूमती पंखुड़ियों को ध्यान से देख रही थी जिनके घूमने के साथ साथ जैसे वक्त का पहिया कई वर्ष पीछे चला गया हो।

सोचते सोचते यादों की किताब के पन्ने जैसे एक-एककर खुलने लगे। वक्त की स्याही धुंधली जरूर पड़ गई थी पर शब्दों के निशान बाकी थे।

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उसे याद आया अपना ब्याह सोलहवां वर्ष पूरा भी नहीं हुआ था कि उसकी विदाई हो गई। दो वर्ष बड़े राजीव भी थे अल्हड़, मस्त बेफिक्र। कोई नौकरी तो थी नहीं कि घर से बाहर जाते घर का पुश्तैनी

बिज़नेस पिता सुरेश जी संभाल ही रहे थे। सो राजीव बाबू दिन भर अपनी नई नवेली दुल्हन के इर्द-गिर्द चक्कर काटा करते। और अम्मा वो तो अपने बेटे बहू की लाख बलैयां लेती नहीं थकतीं। रोज अपनी लाडली बहू की नज़र उतारा करतीं।

नीरा भी अम्मा के साथ बैठीं अमिया छीलती या चावल बीनती घूंघट की ओट से कनखियों से तिरछी नज़रों के शरारती बाण चलातीं जो राजीव के दिल के आर-पार हो जाते। अम्मा दोनों की प्रेम लीला को देखकर भी अनदेखा कर देतीं।

ब्याह से पहले राजीव बहुत महंगी फटफटिया (मोटरसाइकिल) लाया। सुरेश जी ने कहा भी कि कार ही ले लो, बहू आएगी तो आराम रहेगा। पर वो क्या जाने उनके लाडले का सपना तो था उनकी बहुरिया उसकी कमर को पकड कर अपने गाल उसकी गर्दन से चिपकाकर बाईक पर उसके पीछे बैठे और फुल स्पीड चला कर लॉंग ड्राईव पर ले गए

यू ही प्रेम सागर में डूबते उतरते कब एक वर्ष बीत गया और नीरा चांद से बेटे की माँ बन गई, पूरे नौ महीने सुरेश जी उनकी पत्नी और राजीव ने नीरा को धरती पर पैर नहीं रखने दियाl

अम्मा ने अपना नौलखा हार पोता होने की खुशी में नीरा को दे दियाl नीरा को राजीव और साँस ससुर का प्रेम देख कर डर लगता कहीं किसी की नजर ना लग जाए l

बेटा होने से कमजोर होने की वजह से अक्सर बीमार रहतीl बेटे की छठी पर राजीव ने कहा वह नौलखा हार पहन ले, पर नीरा अपनी तबीयत ठीक ना होने पर पहन नहीं पाईl

बेटे के पहले जन्म दिन को खूब धूम धाम से मनाने की सोची, सारे रिस्तेदार और मेहमानों से घर भर गया थाl अम्मा और राजीव के कहने पर नीरा खूब अच्छी तरह से तैयार हुईl

लाल बनारसी साड़ी में एक दम स्वर्ग की अप्सरा लग रही थी l राजीव ने देखा एकदम देखता ही रह गया "उसने कहा अब मैं सब्र और नहीं कर पाऊँगा बस तुमको अम्मा का नौलखा हार पहने देखना चाहता हूँ "

और एक मिनट में आया कहकर बाईक उठाकर निकल गया ll

उधर नीरा जैसे ही गले में नौलखा हर डालने ही वाली थी कि बारह शोर मचा गली के नुक्कड पर तेज रफ्तार आती कार ने राजीव को टक्कर मार दी और राजीव को कुचल कर वह भाग गयाl

राजीव के हाथ में नीरा का मनपसंद सफेद मोगरा के फ़ूलों का गजरा दबा थाl जिसे लेने वो जल्दी से गया था ll

अस्पताल ले जाते जाते राजीव नीरा और माँ बाप को बिलखता छोड़ कर दूसरी दुनिया में जा चुका था। नन्हा सोनू तो अपने में मस्त था, वह कुछ समझ ही नहीं पा रहा था l

कि उसके सर से पिता का साया छिन गया नीरा की जैसे दुनिया ही उजड़ गईl राजीव के बिना जीना तो उसे आता ही नहीं था, उसकी दुनिया तो राजीव से शुरू होकर उस पर ही खत्म होती थीl

जो राजीव उससे एक मिनट भी अलग नहीं होना चाहता था वो कैसे उसे बिना कुछ कहे बिना बताये उसे अकेला छोड़ कर चला गया ll

नीरा गुमसुम सी हो गई उसे ना अपना ख्याल रहा और ना दुधमुंहे सोनू का ना ही उसे बेबस साँस ससुर का जिनके बुढ़ापे की लाठी उनसे दूर चला गया कभी वापस नहीं आने के लिएl

फिर धीरे धीरे नीरा ने उन तीनों के लिए अपने आप को संभाला जो राजीव के चले जाने के बाद उसकी जिम्मेदारी थी ll

राजीव के जाने के दुख से उबर सुरेश जी और उनकी पत्नी दोबारा घर बसाने को कहाl पर नीरा ने राजीव के अलावा किसी और के साथ घर बसाने से साफ इंकार कर दियाl

उसने सुरेश जी के साथ बिजनैस संभालना शुरू किया तीनों का एक मात्र ध्येय सोनू को पढ़ा लिखा कर बड़ा करना था l

समय बीता सोनू इंजीनियर बन गयाl सुरेश जी सारा बिजनैस नीरा और सोनू के नाम कर रिटायर्मेंट ले लीl सोनू का व्याह शीना से हो गया सुरेश जी और उनकी पत्नी भी चल बसे ll

नीरा के पास सबकुछ था पर मन का सुकून नहीं था राजीव की मृत्यु के बाद उसके जीवन के सारे रंग फीके पड गये थे, राजीव के बिना उसे जीवन से बेईमानी लगताl फिर एक दिन नीरा ने शीना को सोनू से कहते सुना " मम्मी के पास नौलखा हार उसे क्या वो बुढ़ापे में पहनेंगीं?

मुझे जो जेवर उन्होंने चढ़ाए उनमे एक भी उसकी टक्कर का नहीं हैl

मैं तो उनसे वो नौलखा हार लेकर रहूँगी "

कहकर वो नीरा के पास पहुच गई और नौलखा मांग लिया

नीरा- वह मनहूस नौलखा हार मैं कभी तुम्हारे गले में नहीं पहनाउंगी l

राजीव उसे देखने की ललक में चले गए अब सोनू? नहीं कभी नहीं, इसे बेच देंगे और इसके पैसे किसी गरीब लड़की के व्याह में दान कर देगेl कहते हुए नीरा के आसुओं का बरसों का रुका सैलाब उमड़ पड़ाl

सोनू और शीना का सिर दुःख और शर्म से झुक गया ll

मित्रों

मनुष्य सोचता कुछ और होता कुछ हैंl किसी के चले जाने से जीवन रुकता नहीं वक्त का पहिया अपनी रफ्तार से चलता रहता है l

जीना पड़ता है दूसरों के लिए बिना किसी मंजिल के, नीरा भी राजीव के संग मर तो न सकीं पर अपने कर्तव्यों के पालन के लिए उसे जीना था जो काम राजीव अधूरे छोड़ कर गया था उन्हें पूरा करने के लिए l

पर ऐसी अधूरा जीवन, जीवन नहीं रहता ll

धन्यवाद--------🙏🙏

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