शनिवार को शनि अमावस्या है और शनिवार पड जानें के कारण इसका विशेष महत्व बन गया है। जिसे शनिश्चरी अमावस्या के नाम से जानते है।शनिवार को शनि अमावस्या है और शनिवार पड जानें के कारण इसका विशेष महत्व बन गया है। जिसे शनिश्चरी अमावस्या के नाम से जानते है। हर माह की अमावस्या श्राद्ध की अमावस्या कही जाती है। इस दिन पितरों के लिए अर्पण किया गया दान अगर ब्राह्मण को दिया जाए तो यह बहुत शुभ होता है। आझ शनिवार पड जाने के कारण इसका महत्व और बढ़ गया है। अमावस्या के दिन पितरों की पूजन का दिन है और शनिवार शनि ग्रह शांत करनें का दिन है। इस तरह आज शनि- अमावस्या का पूजन आप साथ-साथ कर सकते है। इस दिन शाम के समय पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाते हुए शनि देव का ध्यान करते है। इशू तरह पितरों को भी दूध और कालें तिल आदि से पूजन करते है।
जानिए इसका महत्व, कथा और यह पूजा कैसे करनी चाहिए।
पितरों की पूजा पीपल के पेड़ के ही नीचे करनें का कारण हमारें दिमाग में हमेशा एक बाद आती रहती है कि क्यों पितरों की पूजा पीपल के वृक्ष के नीचें की जाती है। किसी ओर जगह क्यों नही। इस बारें में विस्तार से हरवंश पुराण में बताया गया है। इस पुराण के अनुसार पितृ देवता जो देवताओं के भी देव है और पितृ स्वर्ग में रहते है। इनका पूजा सभी करते है यानि कि इंसान, देवता, साप. किन्नर, गंधर्व किन्नर आदि करते है। ब्रह्मा जी नें पितृ देव को आज्ञा दी कि लोगों के श्राद्ध से तृप्त होकर इन लोगों की कामनाओं को हूरा करों, क्योंकि ब्रह्मा की पूजा पीपल के पेड़ में की जाती है। इसीलिए शनि और पितृदेव की पूजा भी पीपल के पेड़ के नीचें की जाती है।
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