शायरी

in shayeri •  7 years ago 

मुझ को शिकस्त-ए-दिल का मज़ा याद आ गया,
तुम क्यों उदास हो गए तुम्हें क्या याद आ गया;
कहने को ज़िन्दगी थी बहुत मुख़्तसर मगर,
कुछ यूँ बसर हुई कि ख़ुदा याद आ गया।

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