इतनी उलझन भी ठीक नहीं !
क्या सही क्या गलत -- देशवासियों पर छोड़ दें , सुप्रीमकोर्ट पर छोड़ दें ,,,
दरअसल सैकड़ों घोटालों में फंसी कांग्रेस रॉफेल के जरिये सुर्खरू होने का ख्वाब देख रही है । कांग्रेस के पास इतना प्रमाण तो है कि पाँच साल पहले उसने रॉफेल का सौदा जिस दर पर नहीं किया , मोदी सरकार ने कर लिया ।
कांग्रेस ने रॉफेल का सस्ता सौदा क्यौं नहीं किया , इसका कोई जवाब नहीं । अब भारत सरकार को भृष्टाचारी ठहराने का आरोप तो है , पर कांग्रेस के पास कोई निश्चित प्रमाण नहीं ।
अजीब आलम है ! !
जिस फ्रांस सरकार के साथ एमओयू साइन हुआ , वह कह रही है सौदा खरा है ,,,
दसॉल्ट कम्पनी कहती है कि सौदा खरा है ।
भारतीय सेना , वायुसेना , रक्षा मंत्रालय और भारत सरकार कह रहे हैं , सौदा खरा है । सरकार ने दाम सहित सारे दस्तावेज सुप्रीम कोर्ट को बंद लिफाफे में सौंप भी दिए हैं । कोर्ट से कहा है कि सौदा खरा है ,,,,
पर राहुल और उनकी पार्टी कह रहे हैं कि सौदा खोटा है !
बाकी विपक्ष चुप है ,,,,
ऐसे में जनता क्या कर सकती है ?
केवल प्रतीक्षा ?
दुर्भाग्य से देश में राहुल भक्तों की एक जमात खड़ी हो गई है । यह जमात खुद ही दूसरों को मोदी भक्त बताकर बड़ी चालाकी से एक विभाजन पैदा करना चाहती है ।
मंशा साफ है । कांग्रेस चाहती है कि अगला चुनाव मोदी भक्तों और राहुल भक्तों के बीच हो । चतुराई से कांग्रेस का मकसद है कि देश के ममता भक्त , मुलायम भक्त , वामपंथ भक्त , लालू भक्त , नायडू भक्त आदि सभी भक्त कांग्रेस भक्ति या राहुल भक्ति में डूबने पर मजबूर हो जाएं ! !
मोदी और मोदी भक्तों को रॉफेल में फँसा कर कांग्रेस बाक़ी दलों के भक्तों को अपने साथ जोड़कर चुनावी लंगर घुमाना चाहती है ,,,
दुर्भाग्य से राहुल भैया बड़े कच्चे हैं , अधकचरे हैं । वे समझते नहीं कि विपक्ष के अन्य तमाम नेता किसी के बाप बन सकते हैं , बेटे नहीं ?
तो झेलिये साहब ,,, राहुल की रॉफेल झेलिये !
भले ही आप सब कुछ समझ जाएं , फिर भी झेलिये ???
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