ढ़ोल नगाड़े बजाने आते हैं भूत, डरावनी आवाज़ों से गूंज,गाँव, शाम होते ही घरों मे क़ैद हो जाते हैं लोग

in steemit •  3 years ago 

भारत के इस गाँव मे ढ़ोल नगाड़े बजाने आते हैं भूत, डरावनी आवाज़ों से गूंज उठता है पूरा गाँव, शाम होते ही घरों मे क़ैद हो जाते हैं लोग
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सतना: अक्सर देखा सुना जाता है भूतों के नाम से हर छोटा-बड़ा इंसान अपने जीवन में एक न एक बार ज़रूर डरा रहता है। हालांकि कहा जाता है ये केवल एक किस्म का वहम है, भूत होते हैं या नहीं इस बात पर शोध नहीं किया गया। परंतु क्या आप जानते हैं हमारे देश में एक ऐसी जगह के बारे में बताने जा रहे हैं जहां भूतों के होने का ही नहीं बल्कि उनके ढोल-नगाड़े बजाने का भी दावा किया जाता है। जी हां दरअसल ये जगह मध्यप्रदेश के सतना जिले के धनिया गांव में ह, जिसे भूतेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।

जहां एक तरफ़ लोग भूत-प्रेत के नाम से डरते हैं, तो वहीं इस जगह को बेहद पसंद करते हैं। परंतु कहा जाता है जैसे ही यहां सूरज ढ़लता है वहां से उल्टे पांव दौड़ने लग जाते हैं। जिसका भी एक कारण है। दरअसल कहा जाता है इस वीरान जगह पर सूरज के ढ़लने के बाद ढ़ोल नगाड़ों की आवाज़ें सुनाई पढ़ने लगती है। जिस कारण यहां रुकने वाले हर इंसान की सांसे थमने लगती हैं। लोक मत है कि ढ़ोल नगाड़ों की ये आवाज़ें मनगणत नहीं है, यहां के लोगों द्वारा इसका अनुभव किया गया है।कहा जाता है जो लोग भी उस जगह पर जाकर वापस लौट पाएं हैं उनके चेहरे पर आज भी उस जगह का नाम लेते हुए भूतों का डर दिखता है। बता दें कि महादेव की इस ख़ास और अतरंगी जगह पर जाने के लिए नदी को पार करना पड़ता है जो कि हर किसी के लिए संभव नहीं है और जैसे-तैसे करके कोई नदी को पार भी कर गया तो उसे वापस सूरज ढ़लने से पहले लौटकर आना पड़ता है। बताते चलें कि उसी नदी के बीच के एक जगह पर भूतेश्वर नाथ के रूप में शिवलिंग विराजमान है, जहां शिवलिंग के ऊपर कोई छत तक नहीं है, यानि कि यहां कोई भव्य मंदिर का निर्माण नहीं किया गया है और इस बारे में यहां के लोगों का कहना है कि इस मंदिर को बनाने का कई बार प्रयास किया गया। मगर भूतेश्वर अपने ऊपर छत का सहारा नहीं लेना चाहते और आज भी पिलर बने हुए खड़े हैं, जिसने भी यहां छत बनाने का प्रयास किया उसको नुकसान अवश्य उठाना पड़ा है। कहा जाता है आज से लगभग 5 साल पहले भूतेश्वर महादेव नामक इस जगह पर लोग दिन में जाने पर भी भय का वातावरण महसूस करते थे मगर अब दिन में तो लोग आना-जाना करते हैं, मगर सूरज ढलते ही दूर-दूर तक यहां कोई नहीं जाता।

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