Sundar vichar

in sundar •  last year 

चतुर्विध मास व्यवस्था एवं मल मास वर्णन...

〰️〰️🌹〰️〰️🌹🌹〰️〰️🌹〰️〰️
सूतजी बोले-ब्राह्मणों! अब मैं (विभिन्न प्रकार के) मासों का वर्णन करता हूँ। मास चार प्रकार के होते हैं-चांद्र, सौर, सावन तथा नक्षत्र। शुक्ल प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक का मास चान्द्र-मास कहा जाता है। सूर्य की एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति में प्रवेश करने का समय सौर-मास कहलाता है। पूरे तीस दिनों का सावन-मास होता है। अश्विनी से लेकर रेवती पर्यन्त नाक्षत्र-मास होता है। सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक जो दिन होता है, उसे सावन-दिन कहते हैं। एक तिथि में चन्द्रमा जितना भोग करता है, वह चन्द्र-दिवस कहलाता है। राशि के तीसरे भाग को सौर-दिन कहते हैं । दिन-रात को मिलाकर अहोरात्र होता है। किसी भी तिथि को लेकर तीस-दिन बाद आने वाली तिथि तक का समय सावन-मास होता है। प्रायश्चित, अन्नप्राशन तथा मन्त्रोपासना में, राजा के कर-ग्रहण में, व्यवहार में, यज्ञ में तथा दिन की गणना आदि में सावन-मास ग्राह्य है। सौर-मास विवाहादि-संस्कार, यज्ञ-व्रत आदि सत्कर्म तथा स्नानादि में ग्राह्य है। चान्द्र-मास पार्वण, अष्ट का श्राद्ध, साधारण श्राद्ध, धार्मिक कार्यों आदि के लिये उपयुक्त है । चैत्र आदि मास में तिथि को लेकर जो कर्म विहित हैं, वे चान्द्र-मास से करना चाहिए। सोम या पितृगणों के कार्य आदि में नाक्षत्र-मास प्रशस्त माना गया है। चित्रा नक्षत्र के योग से चैत्र पूर्णिमा होती है, उससे उपलक्षित मास चैत्र कहा जाता है। चैत्र आदि जो बारह चान्द्र-मास हैं, वे तत्-तत्-नक्षत्र के योग से तत्-तत्-नाम वाले होते हैं।

जिस महीने में पूर्णिमा का योग न हो, वह प्रजा, पशु आदि के लिये अहितकर होता है। सूर्य और चन्द्रमा दोनों नित्य तिथि का भोग करते हैं । जिन तीस दिनों में संक्रमण न हो, वह मलिम्लुच, मलमास या अधिक मास (पुरुषोत्तम मास) कहलाता है, उसमें सूर्य की कोई संक्रान्ति नहीं होती। प्राय: अढ़ाई वर्ष (बत्तीस माह)-के बाद यह मास आता है। इस महीने में सभी तरह की प्रेत-क्रियाएँ तथा सपिण्डन-क्रियाएँ की जा सकती हैं। परंतु यज्ञ, विवाहादि कार्य नहीं होते। इसमें तीर्थ स्नान, देव-दर्शन, व्रत-उपवास आदि, सीमन्तोन्नयन, ऋतुशान्ति, पुंसवन और पुत्र आदिका मुख-दर्शन किया जा सकता है। इसी तरह शुक्रास्त में भी ये क्रियाएँ की जा सकती हैं। राज्याभिषेक भी मलमास में हो सकता है। व्रतारम्भ, प्रतिष्ठा, चूडाकर्म, उपनयन, मन्त्र उपासना, विवाह, नूतन गृह-निर्माण, गृह-प्रवेश, का आज का ग्रहण, आश्रमान्तर में प्रवेश, तीर्थ यात्रा, अभिषेक-कर्म, वृषोत्सर्ग, कन्या का द्विरागमन तथा यज्ञ-यागादि इन सबका मलमास में निषेध है। इसी तरह शुक्रास्त एवं उसके वार्धक्य और बाल्यत्व में भी इनका निषेध है। गुरु के अस्त एवं सूर्य के सिंह राशि में स्थित होने पर अधिक मास में जो निषिद्ध कर्म हैं, उन्हें नहीं करना चाहिए। कर्क राशि में सूर्य के आने पर भगवान शयन करते हैं और उनके तुला राशि में आने पर निद्रा का त्याग करते हैं।

सन्दर्भ 👉 भविष्य पुराण

IMG_20230720_124725.jpg

ऐसे और पोस्ट देखने के लिए और राष्ट्रीय हिन्दू संगठन से जुड़ने के लिए क्लिक करें 👇👇

https://kutumbapp.page.link/jgGGJU1fkax6LBX38?ref=VSTZ5

Authors get paid when people like you upvote their post.
If you enjoyed what you read here, create your account today and start earning FREE STEEM!