सहदेई-तंत्र

in tantra •  2 years ago 

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यह तांत्रिक दृष्टि से बहुत ही लाभदायक और अद्भुत गुणों से संपन्न
वनस्पति है। इसे 'सहदेवी' के नाम से भी जाना जाता है। शनिवार को
निमंत्रण दे आने के बाद रविवार को (रवि पुष्य योग में) निम्न मंत्र का जप करते
हुए, जल अर्पण करके, समूचा पौधा उखाड़ लें और घर लाकर उसे देव-प्रतिमा
की भांति पंचामृत से स्नान कराकर, शुद्ध व पवित्र आसन पर रखें और धूप-दीपादि
से पूजा करके, निम्न मंत्र को इक्कीस बार जपते हुए, पौधे की स्तुति करें।
प्रात: पौधे के पास जाने से लेकर, पूजा-समाप्ति तक साधक को सर्वथा मौन
रहना चाहिए। यथा संभव एकांत भी रहे, इसका कारण यह है कि दूसरे की
उपस्थिति से तन्मयता भंग हो जाती है तथा लोगों की हास्यपूर्ण अथवा अशुभ
दृष्टि-से साधना में भी विघ्नता उत्पन्न हो जाती है। मंत्र जप के पश्चात्
आवश्यकतानुसार पौधे को प्रयोग में लाना चाहिए। मंत्र यह है

ॐ नमो रूपावतीं सर्वप्रोतेति श्री सर्वजनरंजनी सर्वलोककरणी
सर्वसुखरंजनी महामाईल घोल थी कुरु कुरु स्वा ।
इस प्रकार तंत्रोक्त विधि से प्राप्त और पूजित सहदेई का पौधा अनेक प्रकार
के दिव्य गुणों से युक्त हो जाता है। इसे अत्यंत धन-संपत्तिदायक माना गया है।
→ सहदेई मूल को लाल कपड़े में लपेटकर, तिजोरी, अन्न-भंडार, आभूषण-
पेटिका आदि में रखने से धन-संपत्ति में आशातीत वृद्धि होने लगती है। यदि इसे
दुकान के पूजा-स्थल पर रखा जाए, तो दुकान के कारोबार में तेजी आ जाती है।
→पौधे को घर के पूजा-स्थल में स्थापित कर, नित्य उसके पूजा-दर्शन से
घर में खुशहाली रहती है, किसी के बीच कोई मनमुटाव भी उत्पन्न नहीं होने
पाता।
→ पौधे के पंचाग का चूर्ण अभीष्ट व्यक्ति को खिलाने से वह वशीभूत हो
जाता है। साथ ही इस चूर्ण को गाय के घी के साथ, मासिक-धर्म के पांच दिन पूर्व
से, पांच दिन बाद तक नियमित रूप से सेवन करने वाली स्त्री को संतान का लाभ
होता है।
पंचांग को पीसकर, माथे पर तिलक की भांति लगाने से मान-सम्मान की
वृद्धि होती है। सामाजिक सम्मान प्रदान कराने में यह प्रयोग बहुत ही लाभदायक
रहता है।
मूल को गंगाजल में घिसकर, नेत्रों में आंजने से सम्मोहक-प्रभाव उत्पन्न
हो जाता है।
→ यदि कोई स्त्री प्रसव-वेदना से व्याकुल हो तो, मूल को तिल के तेल में
घिसकर स्त्री की जननेन्द्रिय पर लेप करने से अथवा लाल धागे की सहायता से
कमर में बांध देने से, प्रसव सहज ही हो जाता है तथा वो पीड़ा से भी मुक्त हो
जाती है।
सहदेई मूल के ताबीज को बच्चों के गले में पहनाने से कंठमाला का रोग
की
दूर हो जाता है।

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