शार्टकट से धन कमाने का प्रयास नहीं करना चाहिए, ऐसा धन सुख नहीं देता
शार्टकट से धन कमाने का प्रयास नहीं करना चाहिए, ऐसा धन सुख नहीं देता
संत रविदास अपनी झोंपड़ी में बैठकर जूते बना रहे थे।उन्हें संत रैदास के नाम से भी जाना जाता है। इस काम से जो मिला, उसी में जी रहे थे। वे अपनी कमाई से संतुष्ट थे।
एक दिन एक साधु उनकी कुटिया में आया। उन्होंने देखा कि रैदास एक सच्चे संत थे। साधु ने सोचा कि रैदास की मदद कर दी जाए। उसने अपने बैग से एक पत्थर निकाला और रैदास से कहा, 'रैदास जी, यह एक पारस पत्थर है। दुर्लभ है मुझे यह कहीं से मिला है। अब यह वह पत्थर है जो मैं तुम्हें देना चाहता हूं। इसकी खासियत यह है कि यह लोहे को सोने में बदल देता है।
साधु ने लोहे का एक टुकड़ा लिया और उस पर पारस पत्थर से प्रहार किया और वह सोने में बदल गया। साधु ने सोचा कि इस पत्थर को संत रैदास स्वीकार कर लेंगे।
संत रैदास ने कहा, 'साधु बाबा, इस पत्थर को अपने पास रखो। मैंने जो मेहनत की है वह मेरे लिए काफी है। मेहनत करने का मजा ही अलग है।
जब साधु ने बार-बार उसे पत्थर रखने के लिए कहा, तो रैदास ने कहा, 'यदि आप इस पत्थर को नहीं रखना चाहते हैं, तो यहां के राजा को दे दो। यहाँ का राजा बहुत गरीब है। उसे हमेशा पैसे की जरूरत होती है या कोई ऐसा गरीब दिमाग वाला व्यक्ति ढूंढता है जो अमीर हो लेकिन पैसे के लिए पागल हो रहा हो।
यह कह कर संत रैदासजी अपना कार्य करने लगे। तब साधु को समझ में आया कि सच्चा संत क्या होता है।
आत्मज्ञान का पाठ : संत रैदास का स्वभाव हमें सिखाता है कि हमें जीवन में कभी भी शॉर्टकट नहीं अपनाना चाहिए। ईमानदारी और मेहनत का मजा ही कुछ अलग है।
प्रलोभन से बचें। ईमानदारी और मेहनत से मिले धन से अगर आप संतुष्ट हैं तो जीवन में सुख-शांति बनी रहेगी।