झारखण्ड रांची के पांडरा की सच्ची कहानी Story-1

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दुनिया में शायद ही कोई ऐसा मां बाप होंगे जो अपने बच्चों की खुशी के लिए कुछ न करना चाहते होंगे बल्कि अधिकांश लोग ऐसे ही हैं। अपनी औलाद के लिए क्या कुछ नहीं करते? वो कम सुविधाओं में रहना पसंद करते हैं, लेकिन औलाद के लिए सब कुछ देते हैं। इसी लिए ताकि वो बच्चे बड़े होकर अपने सपनों को पूरा कर सकें। आज की जो सच्ची घटना मैं आपको सुनाने जा रहा हूं। इस सच्ची घटना भी कुछ ऐसी ही है कि मां बाप अपने बच्चों के लिए गांव छोड़ देते हैं और शहर आते हैं। शहर में आने के बाद बच्चों का अच्छे स्कूल में एडमिशन कराते हैं। ऐसे एडमिशन कराने का एक ही मकसद था कि ताकि बच्चे अच्छे से अच्छी एजुकेशन लेकर अपने सपने पूरे कर सकें। मगर बेटी ने ऐसा काम किया न केवल दोनों की जिंदगी हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जाती है और मां जिन्दगी और मौत की ऐसी दहलीज पर आकर खड़ी हो गई है, जहां से उसका बचना बहुत मुश्किल हो गया है। आज की कहानी वाकई शर्मसार कर देने वाली है। परेशान कर देने वाली है। इस कहानी को सुनने के बाद हो सकता है कि आपके रोंगटे खड़े हो जाएं। आप सोचने पर मजबूर हो जाएं। आदाब नमस्कार। शास्त्रीय काल में उस्मान सैफी आज की जो सच्ची घटना मैं आपको सुनाने जा रहा हूं। यह सच्ची घटना है। झारखंड प्रदेश के रांची शहर में एक थाना लगता है। पंडरा और इसी पंडरा नगर में एक इलाका है। जनक नगर जनक नगर इलाके की ओझा मार्केट के मैं एक घर बना हुआ है। ऐसा घर की वहां से आम लोगों का आना जाना है। ये 18

जून 2 हज़ार 22 की सुबह लगभग पांच या सवा पांच बजे के आसपास जो दरवाजा है, उसके नीचे से बूंद बूंद खून गिर रहा है। इसके बोल खून टपक जमीन चारा है तो राह चलते एक व्यक्ति की इसमें नजर पहुंच जाती है। उस ब्लड को बहता हुआ देखकर वो रुक जाता है और झांकने की कोशिश करता है। लेकिन घर के अंदर ऐसा कुछ भी दिखाई नहीं देता। जहां से ये ब्लड निकलता हुआ उसे पता चल सके। कैसे निकल रहे आसपास में जो और लोग रहते हैं और लोगों से कहता है कि मुझे कुछ शंका हो रही है। कुछ ऐसा लग रहा है कि कुछ न कुछ यहां पर अप्रिय घटना घटी है। देखो अंदर से खून निकल रहा है। आसपास के लोग भी आते हैं और लोग आने के बाद उस दरवाजे को खोलने की कोशिश करते हैं। आवाज लगाते हैं, मगर अंदर से कोई भी रिस्पॉन्स नहीं आ रहा था। इसी बात को देखते हुए लोगों को चिंता होने लगती है। घर के अंदर तीन सदस्य रहते हैं। इस घर की मालकिन चंदा देवी जिसकी उम्र लगभग 40 साल के आसपास से एक बेटा है। एक बेटी है बेटी 12वीं क्लास में पढ़ती जिसकी उम्र लगभग 17 साल नाम श्वेता सिंह बेटा नौंवी क्लास में पढ़ता है। उम्र लगभग 14 साल और नाम प्रवीण कुमार उर्फ ओम जो कि डीएवी कॉलेज में ये बच्चे पढ़ते हैं, वहीं डीएवी स्कूल के छात्र हैं। घर के तीन सदस्य हैं। तमाम कोशिशें कर ली गई दरवाजा खोलने की लेकिन दरवाजा नहीं खुला। तभी स्थानीय किसी व्यक्ति ने पुलिस को फोन किया और सूचना मिलने पर सुबह सुबह जब पुलिस आती है तो पुलिस भी सन्न रह जाती

है और मौके पर आने के बाद लोगों से पूछते हैं कि क्या बातें क्या परेशानी तो वही जो बूंद बूंद खून निकल कर दरवाजे से बाहर को आ रहा था, उसी ब्लड को देखने की सब लोग कोशिश करते हैं। फिर पुलिस लोगों की मदद से किसी तरह से दरवाजे को खोलने की कोशिश करती है। दरवाजा खुलता है। दरवाजे के एकदम से ही पास में इस घर की जो मालकिन है चंदा देवी वह बहुत घायल अवस्था में गंभीर अवस्था में पड़ी हुई है। उसके शरीर से खून बह रहा था। सिसकियां भर रही है। जीने की चाहत है। उसके अंदर जीना चाहती है। लोगों की तरफ हाथ खोलकर उसे देखने की कोशिश कर रहे थे। पुलिस ने आनन फानन ही उसकी लाश को उसके शरीर को कब्जे में लिया और सीधा राजेंद्र आयुर्विज्ञान आयुर्विज्ञान संस्थान ने वहां पर इलाज के लिए उसको भर्ती करा दिया। ये 18 जून 2 हज़ार 22 का वाकया मैं आपको सुना रहा हूं। उसके बाद फिर पुलिस अंदर जाती है। कुछ जिम्मेदार लोगों के साथ तो जीने के पास के सीढ़ियों के बिल्कुल एकदम करीब में लड़के की भी लाश पड़ी हुई है और जो घर की बेटी है, उसकी बिना पड़ी हुए दो लोगों की घर में मौत हो चुकी है। तीसरा जो व्यक्ति है वो घायल अवस्था में जिसको उपचार के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया है। हर कोई व्यक्ति पूरा शहर की जाना चाहता था कि आखिरकार इस घर के अंदर रहने वाले तीन सदस्य हैं कि उन्होंने इनपर हमला किया है। कौन है वो लोग मां बोलने की कंडिशन नहीं थी क्योंकि काफी हद तक उसके शरीर से खून बह चुका था। अब पुलिस ने घर के एक एक

कमरे को जाकर बारीकी से देखने की कोशिश की जैसे सामान रखा हुआ था। वैसे का वैसे रखा हुआ है। किसी ने कोई लूटपाट की कोई कोशिश नहीं की है। पुलिस और जांच पड़ताल में जुटी है। पता चलता है कि इस घर का जो मालिक है इसका नाम संजीव कुमार है जो कि आबूधाबी में रहकर नौकरी करता है। अपने बच्चों को यहीं रांची में रहकर पढ़ाता है और अच्छी एजुकेशन दिलवा रहा था। पुलिस और मामले की जांच करती है। जांच करने पर पता चलता है कि ये लोग मैं बिहार प्रदेश का एक जिला है। सारण और उसी का थाना लगता है दावत दावत थाना क्षेत्र का गांव लगता है। इटवा का बात ये वहां के रहने वाले थे। परिवार ने सोचा कि बच्चों को अच्छे एजूकेशन दिलाने के लिए इनको शहर लेकर चलते हैं ताकि वहां पर ये पढ़ सके पढ़ लिख कर कुछ बन सके। पुलिस के लिए और आसपास के लोगों के लिए रिश्तेदारों के लिए खासकर इसके पति के लिए। जो कि अबुधाबी में था। उसको सूचना दी जाती कि तुम्हारे बच्चों का मर्डर हो चुका है। तुम्हारी पत्नी गंभीर रूप से घायल है। तुम्हें किसी पर शक है तो बताइए तब ही इस परिवार की तरफ से एक एफआईआर की कॉपी मिलते ही एक प्रार्थना पत्र मिलता है, जिसके आधार पर एफआईआर लिखी जाती है। एक लड़का है जिसका नाम अर्पित है उम्र जिसकी 19 साल है और जो कि रातू थाना क्षेत्र वहां का रहने वाला है, उसपर शक जाहिर किया गया था। कुछ समय पूर्व उस लड़के के विरुद्ध थाने में भी शिकायत दर्ज की गई थी। उस पर आरोप लगाया गया था कि वो उनकी लड़की को परेशान करता

है। पुलिस उस लड़के की तलाश में जुटती है तो वो लड़का मिलता नहीं है। ऐसा कौन सा प्रदेश था? आसपास का ऐसा कौन सा जिला था जहां पर उस लड़के को अर्पित को तलाशा नहीं जा रहा था। चाहे वो बात बिहार की हो, झारखंड की हो, छत्तीसगढ़ की हो या महाराष्ट्र की हो। कई ऐसी जगहों पर उस लड़के की जो तलाश की जा रही थी। एक एक दिन करके दिन गुजरने लगते हैं और कड़ी मशक्कत के बाद आखिरकार 26 जून 2 हज़ार 22 को वो लड़का पुलिस के हत्थे चढ़ जाता है और पुलिस के हत्थे चढ़ने के बाद जब उससे पूछताछ की जाती है कि आखिरकार क्या बात है तुम्हारा ही नाम क्यों आता है? पुलिस इस बीच में जब से तलाश कर रही थी तो उस लड़के का जो मोबाइल नंबर था, उसकी सीडीआर यह सब निकलवाई जाती है तो उसे मोबाइल से सीनियर से पता चलता है कि इस लड़के का इस मोहल्ले में आना जाना था। साथ ही उस लड़की से जिसका नाम श्वेता सिंह है, जिसकी उम्र लगभग 17 साल है जो कि बार्बी की छात्र थी उससे भी मिलना जुलना था। पुलिस और पड़ताल करने की कोशिश करती तो पता चलता है कि मां ने इसकी शिकायत की थी। विरोध कर रहे थे कि तुम मेरी बेटी से दूर रहो। हम लोग परेशान मत करो। नहीं तो हम तुम्हारे खिलाफ कड़ा एक्शन लेंगे। घर परिवार की तरफ से पहली मिट्टी तय है कि अगर पैसे का नाम आता है। अर्पित का और पुलिस इसको हिरासत में लेती है। 26 जून कोर्ट से पूछताछ करती है तो वाकई चौंकाने वाला खुलासा होता है। नर्सरी लड़का कहता है कि घरवालों ने जितना

हम लोग रोकने की कोशिश की। स्मिता को अर्पित को वो उतना ही मिलने की कोशिश करते थे और वो मौके की तलाश में तथा रात के अंधेरे में जब रात पूजा करते थे तब वो पीछे के रास्ते से सीढ़ी लगाकर किसी तरीके से घर में पूजा करता था और लड़की के साथ जब तक उसका मन करता था तब तक उसके साथ वक्त बिताया करता था। यह सिलसिला काफी समय से लगातार ऐसी चल रहा था, मगर हमेशा ऐसे ही चलता रहे। यह जरूरी नहीं है। 17 और 18 जून की रात लगभग दो या 03:00 बजे के आसपास ही लड़का घर के अंदर प्रवेश कर जाता है। फिलहाल गर्मी का बेइंतहा मौसम है। गर्मी के मारे लोगों का जीना मुहाल हो रहा है और चंदा देवी क्या रात को किसी वक्त आप पर जाती है। जब चंदा देवी रात में उठती है उसका एक ही मस्तक पानी पीने का वो घर के अंदर जाती है और पानी पीने की जब कोशिश कर रही थी, तभी उसको उसके बेटे और वो लड़का इन के अर्पित एक ऐसी स्थितियां मिलते मिलते हैं जो शायद नहीं मिलने चाहिए वो दोनों ही न्यूड अवस्था में थे। दोनों आपस में एक दूसरे के साथ शारीरिक संबंध बना रहे थे और मां को ये सब देखकर इतना गुस्सा आता है कि वो जाकर अर्पित को एक के बाद एक के थप्पड़ मारने शुरू कर देते है। अर्पित को ये सब देखकर बहुत गुस्सा आता है। अर्पित उसे रोकने की कोशिश करता है और दोनों ही तरफ से हाथापाई शुरू हो जाती। वहीं पास में फ्रीज रखा हुआ है। फ्रीज के ऊपर एक चाकू था वो उस धारदार हथियार से चाकू से उसकी मां पर एक के बाद एक कई

हमले करता है और हमले करने के बाद मां गंभीर रूप से घायल हो जाती है और उसके अंदर से शरीर से ब्लड बहने लगता है। फिर वो चीखने लगती है। चीख कुछ इस तरह से निकलती है कि जिसका बेटा है। प्रवीण कुमार उर्फ ओम उसकी भी मौत हो जाती है। वो दौड़ते हैं अपनी मां को भी बचाने की कोशिश करता है तो वहीं चाकू तो वो हाथ से छूट जाता है, लेकिन पास में खाना थोड़ा रखा हुआ था। वो हथौड़ा एक के बाद एक प्रवीण कुमार को मारता रहा। शिवकुमार की उम्र 14 साल थी और पवन कुमार वहीं घटनास्थल पर ही उसकी मौत हो जाती है। जब अपनी मां को घायल देखती है। श्वेता सिंह और अपने भाई को मरा हुआ देखती है तो उसकी भी चीख निकल जाती है। वो अर्पित का विरोध करने लगती है। वो कहते हैं कि तुमने अच्छा नहीं किया। तुमने मेरे भाई को मारा है। तुमने मेरी मां को मारा है जब वो विरोध कर रही थी तब उसने अर्पित को मारना शुरू किया। पीटना शुरू किया तब उसने वही हथौड़ा जिस हथौड़े से उसने उसके भाई को मारा था, जिस चाकू से उसने उसकी मां को मारा था। उसी हथौड़े उसी चाकू से उसने अपनी प्रेमिका को भी। वहीं घटनास्थल पर ही मौत के घाट उतार दिया और यहां से वो दरवाजा लगा हुआ था कि छत के रास्ते रास्ते से कूदकर भाग जाता है और भागने के बाद हालांकि कहते हैं कि कहानी को कितनी भी शातिर तरीके से क्यों न केजे कानून कभी छिपता नहीं। यहां एफएसएल टीम भी आती है और पुलिस यहां पर इस स्पेशल टास्क फोर्स भी गठित करती है। विशेष दल बनाती है

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