बादल के उस पार (लप्रेक)/ Badal ke us Paar (Laprek)

in writing •  6 years ago  (edited)

जून 2014

बरेली का मेरा प्रवास अब खत्म हो चला था बस गिनती के कुछ आखिरी दिन बचे थे , अपने इस दो साल के अल्पावास के दौरान जिस जगह से मुझे खास लगाव रहा वो था नैनीताल, इस जगह पर मैं बार बार जाना चाहता था और जाता भी था, नैनीताल हिमालय की तलहटी पर बसा एक बहुत खूबसूरत सा हिल स्टेशन था, मौसम ऐसा कि यूरोप की याद आ जाए, भारत भ्रमण मैंने ज्यादा नहीं किया था मगर जितना भी किया था उसमे ये सबसे खूबसूरत था, नैनीताल से मेरे लगाव की वजह को लेकर मेरे मन में हमेशा अस्पष्टता ही रही कि आखिर नैनीताल ही क्यूँ ? शायद जादू की वजह से , जादू का स्पेसशिप भी तो नैनीताल में ही उतरा था और उस जगह जाने की तम्मना मुझे बचपन से ही रही, शायद वही कहीं जादू मिल जाए ? मेरा एक शौक हमेशा से रहा कि जिस भी कस्बे में गया वहां के सबसे हाईएस्ट पॉइंट तक ट्रैक करना और उस पूरे कस्बे को एक साथ अपने कैमरे में समेटना, नैनीताल में वो जगह थी चाइना पीक, 8 किलोमीटर का लंबा ट्रैक जिसे मैं जब भी नैनीताल जाता था देखता था और वहाँ पहुँच कर पूरे नैनीताल को एक साथ अपने कैमरे के लेंस में कैद करना चाहता था , मगर कभी वक़्त की कमी तो कभी दोस्तों की असहमति के चलते ये मुक़्क़मल न हो सका, तो मैंने पश्चिमी यूपी छोड़ने से पहले नैनीताल का एक आखिरी सफर करने का निश्चय किया और वो भी अकेले, न दोस्तों की असहमति का डर न वक़्त की कोई बंदिश, अकेले घूमना मेरे लिए कोई नई बात नहीं थी, धनु राशि का होने की वजह से बचपन से ही घुम्मकड स्वाभाव का लड़का रहा हूँ, अकेला घुमना मेरे लिए काफी रोमांचक रहता है बशर्ते मेरे मोबाइल की बैटरी फुल हो, खैर बरेली से शाम को 8 बजे अपने लक्ष्य की तरफ कूच कर गया मकसद था सुबह की पहली ऊषा में नैनीताल की खूबसूरती कैद करना, मगर आदतन वक़्त पे वहां पहुँच न पाया और मेरा आगमन हुआ प्रातः 10 बजे, बिना दोस्तों के बताये आने पर थोड़ा बुरा तो लग रहा था मगर जून की गर्मी में भी नैनीताल की वातानुकूलित हवाओ से तनबदन की ताजगी सारी उदासी को काफूर कर देने के लिए काफी थी, सो मैंने अपना ईयरफोन लगाया और अपने लक्ष्य की तरफ अग्रसर हो गया, कुछ 2 km ऊपर चढ़ने के बाद और चाय की गुमटी पार करने के बाद जादू जादू गाना सुनते हुए मुझे किसी के बुलाने की आवाज़ सुनाई दी, मैं कौतुहलतावस ये सोचते हुए हुए मुड़ा की इस जंगल में मुझे कौन बुला सकता है, कहीं जादू तो नहीं आ गया ? जब पीछे मुड़ा तो एक 20- 22 साल की झील जैसी आँखों वाली सुनहरे भूरे बालों वाली एक स्वेत रंगत की परी जैसी दिखने वाली खूबसूरत सी लड़की मुझे बुला रही थी, उसे देखकर बस एक ही अल्फाज़ दिल से निकले "या खुदा ये तो नैनीताल से भी ज्यादा खूबसूरत है" लगता है कुदरत ने नैनी ताल इसकी आँखे देख कर ही बनाई होगी ये मुझे तो नहीं बुला सकती और फिर मैं चलने लगा उसने फिर से बुलाया "Excuse me" मैं फिर से पीछे मुड़ा और एक बार कन्फर्म करने के लिए अपने पीछे देखा की मेरे पीछे कोई और तो नहीं जिसे ये बुला रही हो मगर वहां सूखे दरख्तों के अलावा और कोई भी नहीं था , उसने टोकते हुए कहा पीछे क्या देख रहे हो मैं आप ही को बुला रही हूँ, मैंने अटकते हुए कहा जी मममममम मैं ? तो और कोई आपको यहाँ नजर आता है बुलाने के लिए अब मैं बिल्ली तो हूँ नहीं जो चिड़ियों को बुलाऊंगी ? अब मुझे बिल्ली और चिड़ियों का रिश्ता तो समझ नहीं आया मगर हंसी जरूर आ गयी, उसने कहा आप ऊपर जा रहे हैं ?? मैंने कहा नहीं नहीं अभी ऊपर जाने का तो इरादा नहीं है फ़िलहाल के लिए यही चाइना पीक तक जा रहा हूँ , मेरे इस घटिया जोक पर भी वो खिलखिला के हँस पड़ी, उसने कहा थैंक्स गॉड तुम मिल गए मैं 2 घंटे से यहाँ बैठी इंतज़ार कर रही थी कि कोई तो आ जाए, 5 कप चाय खत्म कर चुकी हूँ तो अब जा कर तुम आये, "तुम" मैंने मन ही मन सोचा 2 मिनट में ही ये आप से तुम पर आ गयी ये तो बड़ी फास्ट है फिर अपने आप को सँभालते हुए पूछा क्यू तुम्हारे दोस्त नहीं आये , उसने कहा नहीं मैं नैनीताल अकेले ही आई हूँ , मेरे सारे दोस्त छुट्टियों में अपने घर चले गए, अकेली ? बस घूमने के लिए अकेली नैनीताल चली आई ? सच में इससे ज्यादा बोल्ड लड़की से आज से पहले मैं नहीं मिला था मैंने झट से पूछ लिया कि कहीं तुम्हारा star sign sagittarius (धनु) तो नहीं है , वो हैरान होते हुए बोली how do you know that ?? खैर हमारे 6 km के सफर के साथ हमारी बातों का सिलसिला भी आगे बढ़ता गया और , फिर मैंने उसे अपने नैनीताल दर्शन का मकसद बताया और उसने भी बताया की वो मुरादाबाद से है और नॉएडा के एक कॉलेज से B.tech कर रही है, और बातों बातों में मुझे ये भी पता चला की वो मेरे दिल्ली के स्कूल के एक दोस्त की कजिन है, wow इतना बड़ा coincidence वो चहकते हुए बोली, वैसे तो अपनी लाइफ के coincidence मैं खुद ही प्लान और प्लांट करता था मगर ये पहला था जिसमे मेरी कोई भूमिका नहीं थी और सच में coincidence था ,

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बातें करते करते अब हम शिखर पर आ चुके थे उस जगह पर जहाँ पहुँचने का सपना मैं पिछली कितनी ही नैनीताल यात्राओं से देख रहा था, जहाँ पहुँचने के लिए मैं वास्तव में घर से निकला था, ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे हम सूरज के थोडा और करीब आ गए हो मगर ये निकटता उष्मा कम शीतलता ज्यादा दे रही थी, क्या विहंगम दृश्य था वो, एक तरफ गर्त में नीला हरा 1 मील लम्बा शांत सरोवर दिख रहा था तो दूसरी तरफ बर्फ की चादर ओढ़े खड़ा विशाल हिमालय और बीच में बादलों का निश्चल श्वेत सागर, बचपन में सुना था कि बादलों के उस पार एक दूसरी दुनिया है परियों की दुनिया शायद मैं उस दुनिया में आ चुका था और बादलों के उस पार वाली परी बिलकुल मेरे करीब खड़ी थी अपने कैमरे में खींचे गए फोटोज को उत्सुकतावश मुझे दिखाते हुए, उस लम्हे की रुमानियत उस वक़्त मेरे अलावा शायद और कोई महसूस ही नहीं कर सकता था ,,
सच कहूँ तो नैनीताल की खूबसूरती कैद करने की मेरी लालसा अब फीकी पड़ने लगी थी करता भी तो क्या करता, वो खूबसूरती जिसकी तलाश में मैं 150 km का सफर पूरा करके और 8 km का ट्रैक करके चला आया वो तो मुझे नीचे ही मिल गयी थी ,एक बिन मांझे की पतंग सी उन्मुक्त आकाश में तैरती हुई सी लड़की जो तन से भी खूबसूरत थी और मन से भी खूबसूरत बिलकुल बच्चों जैसी,

खैर हमारा नीचे उतरने का सफ़र चालू हुआ और हमारी बातों का सिलसिल भी चालू हुआ और अंत में वही पहुँच गया जहाँ आमतौर पर 20 पार कर चुके लड़के लड़कियों का पहुँच जाता है , बॉयफ्रेंड & गर्लफ्रेंड, तुम्हारा कोई बॉयफ्रेंड नहीं है, था ?, तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है, थी ? उसने मुझे बिना झिझक सविस्तार बताया अपने past के बारे में और मुझे कहा now it's your turn mate मैंने कहा अपनी स्टोरी में किरदारों के नाम बदल देना वही मेरी स्टोरी है, बस यूँ समझ लो कि हम दोनों एक ही कश्ती के मुसाफिर है, उसने जवाब में मुस्करा दिया, एक दूसरे की बातों में गुम हम लोग कब नीचे उतर आये हमे पता ही नहीं चला , नीचे उतर के एक होटल में कुछ पेट पूजा की फिर नैनीताल के किनारे बैठ के बस एक दूसरे में गुम हो गए , फिर एकदम से उसने याद दिलाया hello mr nonstop तुम्हे जाना नहीं है तुम्हारी train है न 9 बजे की काठगोदाम से, मैंने घडी पर नजर दौड़ाई तो वाकई 6 बज चुके थे , हवा में ठंडक भी अब बढ़ने लगी थी और सूरज की किरणे तो अब चाइना पीक तक चढ़ने लगी थी, सूरज की पहली उषा में नैनीताल की खूबसूरती को कैमरे में कैद करने का मेरा सपना तो पूरा न हो पाया मगर सूरज की आखिरी लाली में उस नैनीताल से भी खूबसूरत खूबसूरती को अपने कैमरे में कैद करने का मौका मैं गवाना नहीं चाहता था, मेरे सामने थी वो और पीछे थी चाइना पीक वो वजह जिसकी वजह से वो थी, "मेरे साथ मेरे पास", पता नहीं क्यू उसे छोड़ के जाने का मन तो नहीं हो रहा था मगर जाना मज़बूरी था, उसका रिजर्वेशन 2 दिन बाद का था और मेरा आज का, और वैसे भी हमारी इस मुख़्तसर सी मुलाकात की उम्र ही कितनी थी हमारे दरम्यान सिर्फ 8 घंटे ही तो गुजरे थे मगर ये 8 घंटे उस वक़्त 8 साल जैसे क्यू लग रहे थे मैं कभी समझ नहीं पाया, मेरी जिंदगी का फ़लसफ़ा भी अजीब रहा है , जब आया था तो दोस्तों को पीछे छोड़ आने का गम और जब जा रहा हूँ तो भी दोस्त को पीछे छोड़ जाने का गम, उसकी पलकों के भीगे कोने मैं भी महसूस कर सकता था, मेरी टैक्सी अब चल पड़ी थी मेरी वो दोस्त हाथ हिला कर अलविदा कहती रह गयी और मैं उसकी आँखों से ओझल हो नैनीताल की वादियों में कहीं खो गया .....

राहुल मेहरा

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Your story is catchy bro. What happen to that girl? Are you in touch with her?
Ya phir ye bas ek choti si mulaqaat abnk reh gayi?

No buddy , wo pehli aur akhiri mulaqaat thi, Kuch riston ki umra bahut chhoti hoti hai lekin uska asar taaumra rehta hai ....

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