बाहुबली का असली नायक कौन? बाहुबली या तीन महिलाएं

in bhaubali •  8 years ago  (edited)

बाहुबली-2 की शुरुआत रजनीकांत स्टाइल में है. अमरेन्द्र बाहुबली की कहानी के इर्द-गिर्द जो मंजर दिखता है, उसका गवाह धुंआधार प्रचार, उत्तेजना, उन्माद और यहां तक कि दूध अभिषेकम है.महिष्मति के साम्राज्य में बदला लेने के नाटक ने दिखा दिया है कि सलमान, आमिर, शाहरुख़ और रजनीकांत जो कुछ कर सकते हैं, उससे कहीं बेहतर एसएस राजमौली कर सकते हैं.

क्या है फिल्म की खासियत?लेकिन, आप अगर दृश्यों की सुंदरता की परतों को उतार दें. ‘कट्प्पा ने बाहुबली को क्यों मारा’ जैसे सवालों को छोड़ दें. क्लाइमेक्स में नायक महेन्द्र बाहुबली और खलनायक भल्लालदेव के बीच की टकराहट को थोड़ी देर के लिए दिमाग से हटा भी दें. तो आपको महसूस होगा कि बाहुबली तीन महिलाओं के बारे में बहुत ज़्यादा कुछ कहती है. इस मूवी की यही बात इसे खास बना जाती है.जो लोग तेलगू और कुछ हद तक तमिल सिनेमा को समझते हैं. जो इन भाषाओं में बनने वाली फिल्मों को देखते रहे हैं, उन्हें अच्छी तरह मालूम है कि इन फिल्मों के जो क्लासिकल फॉर्मेट हैं. उनके तीन महत्वपूर्ण पहलू हैं और ये पहलू हैं-एक दमदार महिला किरदार, रोमांस और कॉमेडी. ये तीनो पहलू इस फिल्म में भी मौजूद हैं.राजमौली और शोले बरसाते संवाद के लिए प्रसिद्ध राजमौली के पिता और पटकथा लेखक विजयेन्द्र प्रसाद की जोड़ी ने दो महिलाओं के बीच की टकराहट को बाहुबली 2 की बुनियाद बना डाली है.

देवसेना के रूप में अनुष्का शेट्टी, शिवगामी के रूप में रम्या कृष्णन, अवंतिका के रूप में तमन्ना से ही यह फिल्म परिभाषित होती है. इंटरवल के पहले ही यह साफ हो जाता है कि शिवगामी एक उभरती हुई रानी है, क्योंकि उसके पति बज्जलदेव एक विकलांग शख्स हैं. इसी कारण से वह महिष्मति साम्राज्य को चलाने के काबिल नहीं हैं.लेकिन मंझे हुए नायक नसीर के पास भी दिखाने को बहुत कुछ है. महाभारत के पात्र चतुर शकुनी से प्रेरित इस किरदार में बिज्जलदेव पहले से ही अपने बेटे बल्लालदेव के खुराफाती दिमाग में जहर भर देता है.शिवगामी के किरदार में कई शेड्स बाप और बेटे के ठीक उल्टा बाहुबली का किरदार शानदार है. भल्लालदेव का किरदार ठीक उसके उलट है. राजमौली ने शिवगामी के किरदार में कई शेड्स वाले अनेक रंग उड़ेले हैं.वह उन दो बच्चों को दूध पिलाने की अपनी इच्छा को सामने रखते हुए अपना मातृत्व दिखाती है. इनमें से एक ही बच्चा उसका अपना बेटा है. लेकिन वह दोनों बच्चों को साथ-साथ पालती है.अमरेन्द्र बाहुबली की मां बच्चे को जन्म देते समय ही चल बसी थी. वह उस समय अपनी स्पष्ट राय देती है, जब यह फैसला करने का वक्त आता है कि राजा कौन बनेगा. वह इसका फैसला अपने बेटे के बजाय ज्यादा काबिल अमरेन्द्र के पक्ष में करती है, जबकि उसका पति अपने बेटे के पक्ष में उसे लगातार उकसाता रहता है.लेकिन उसका स्वाभिमान ही उसका अक्खड़पन भी है. वह उस वक्त घृणा से भर जाती है,जब राजकुमारी देवसेना की शादी में एक छोटे से राज्य कुंतल नरेश के बेटे के हाथ में हाथ देने का समय आता है.जिस तरह से इसे वह अंजाम देती है, वह बेहद असंवेदनशील है, क्योंकि वह एक नौजवान के दिल की धड़कन और उसकी सोच को समझने में नाकाम रहती है.यह स्थिति तब और बदतर हो जाती है, जब अपने अहंकार को खुराक देने के लिए वह चुनौती देती देवसेना को कैद करने और उसे सामने लाने के लिए कहती है.अहंकार में लिए फैसले का असरउसकी ज़िद की मांग तो यहां तक पहुंच जाती है कि अमरेन्द्र को भी उसके सामने गिड़गिड़ाना चाहिए, जिसके कारण महिष्मती का पतन हुआ है.शिवगामी तो शेक्सपियर की रचना किंग लियर के एक किरदार की तरह है. उसका परेशान करने वाला दोष इतना ही है कि वह बिना विचारे कोई फैसला कर लेती है और वह हर आदेश अहंकार में जारी करती है. इसके लिए उसे बाद में हमेशा पछताना पड़ता है.फिर भी शिवगामी, चतुर बिज्जलदेव से किसी भी तरह से प्रभावित होने से इनकार कर देती है.वह निश्चित रूप से मातृत्व प्रेम में अंधी है और हमेशा अपने बेटे भल्लालदेव को खुश और तुष्ट करने की कोशिश करती रहती है. उसे इस बात का डर भी है कि वह कहीं राजसिंहासन के इनकार से चोटिल तो नहीं है. वह एक सही मां नहीं है, क्योंकि वह बिल्कुल नहीं जानती कि आखिर भल्लालदेव के दिमाग में चल क्या रहा है और वह किस तरह के षड्यंत्र का ताना बाना बुन रहा है.अर्जुन के किरदार में हैं देवसेना?राजमौल की किताब में, देवसेना असल में अर्जुन है. यानी मुक़ाबला करता एक ऐसा योद्धा, जो बारीकी के साथ अपने तीर-धनुष का इस्तेमाल कर सकता है. उसके लिए मछली की आंख यानी लक्ष्य ही उसकी गरिमा का अहसास है.वास्तविकता यही है कि महिष्मति की रानी शिवगामी के साथ होती लगातार टकराहट के चलते उसे सम्मान देने की जरूरत ही महसूस नहीं करती है.अपने जीवन में दो महत्वपूर्ण महिलाओं के बीच की दरार और सही-गलत की समझ के बीच अमरेन्द्र सही रास्ते का चुनाव करता है. देवसेना के गुट में होना ही इस बात को स्पष्ट करता है कि बाहुबली की कहानी में चलते पूरे संघर्ष का केन्द्रीय किरदार शिवगामी है.माओवादी संघर्ष से जुड़ी है कहानी?बाहुबली 2 एक पुराने युग की कहानी है. हालांकि दिलचस्प रूप से शुरुआती सीन में ही दंडकारण्य में चल रहे माओवादी संघर्ष का हवाला दिया गया है.लेकिन यह अपने नजरिए में आधुनिक है, जिसमें यौन उत्पीड़न जैसे विषय को भी दिखाया गया है. महिलाओं के साथ खींची गई सीमा को पार नहीं करने के महत्व और इसे पार करने के खामियाजे को लेकर बाहुबली की कहानी बड़ी ख़ूबसूरती के साथ बुनी गई है.हालांकि महिष्मती की एक मनमानी अदालत में शक्ति को कम करने के लिए जैसे-तैसे बर्बर न्याय को अंजाम दिया जाता है और दो महिला किरदारों की तुनकमिजाज प्रकृति अमरेन्द्र बाहुबली के रास्ते को तय कर देती है.बाहुबली 2 का संदेश महिला चरित्र की दमदार भूमिका के कारण बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है. यह फिल्म इस बात पर जोर देती है कि जब एक लड़की अपनी मर्जी की जिंदगी जीने के लिए स्वतंत्रता के साथ बड़ी होती है.


देवसेना तीरंदाजी की शिक्षा लेते हुए, अपना जीवन साथी चुनते हुए और वैवाहिक गठबंधन को नकारने का अधिकार लेते हुए सयानी होती है, तो संदेह नहीं कि उसका अपना एक व्यक्तित्व बनता है जो महल के सामने 25 सालों तक बेड़ियों में जकड़े होने के बाद भी टूटता नहीं है.बाहुबली ये संदेश देती है कि किसी भी महिला के पास यह अधिकार होता है कि वह किसे अपना जीवनसाथी बनाए, किसके साथ वह अपना जीवन बिताए.साथ ही वह अपने ख़ुद के परिवार के अन्य सदस्यों के बीच भी इस बात को मज़बूती से रखे कि कोई भी उससे उसका यह अधिकार नहीं छीन सकता है. राजमौली ने इसे प्रमुखता से दिखाया है कि पुरुष और महिलाओं के बीच, चाहे वो राजा या रानी ही क्यों न हों, दोनों के बीच समान रिश्ते होने चाहिए.पत्नी को अपने पति के सामने इस बात को रखने से कभी हिचकिचाने की जरूरत नहीं है कि वह अपने पति से क्या उम्मीद करती है. अमरेन्द्र से देवसेना कहता है, 'राज्य वापस लाओ.'अवंतिका की अनदेखी करना मुश्किलतीसरी महिला किरदार अवंतिका की भूमिका निभाने वाली अभिनेत्री तमन्ना के पास छोटी भूमिका है. लेकिन उसे भी भावी राजा की संगिनी के रूप में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. वह बाहुबली का भावनात्मक हिस्सा है.शुरुआत में जहां वह एक ऐसी आदिवासी योद्धा की भूमिका निभाती है, जो खुद के साथ-साथ अपने वंश को भी दरिंदों से बचा सकती है.राजमौली की देवसेना और अवंतिका दोनों एक तरह से 21वीं सदी की महिलाएं हैं, जिनके पास अपनी सोच है, जो प्यार कर सकती है, तो मार भी सकती है. तीनों कोई कागजी किरदार नहीं हैं, जिन्हें दृश्यों के सिर्फ हिस्से बना दिए गए हों.दिलचस्प बात तो यह है कि इस फिल्म को बनाने में भी राजमौली के परिवार की महिलाओं ने गजब का योगदान दिया है.उनकी पत्नी रामा ने वेशभूषा की जिम्मेदारी ली है, तो राजमौली की बेटी और भतीजी के साथ-साथ संगीतकार एमएम कीरावनी की बेटी भी महिष्मति को बनाने वाले कलाकारों का हिस्सा थीं.


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