जैन मुनियों की एक प्रथा को आत्महत्या के रूप में भी देखा जाता है, जिसे संथारा कहते हैं,
मुनि तरुण सागर ने भी निधन से दो दिन पहले इस प्रथा का पालन शुरू कर दिया था, उन्होंने इस प्रथा के तहत अन्न-जल का त्याग कर दिया था.
पीलिया से पीड़ित तरुण सागर को डॉक्टरों द्वारा जवाब दे दिया गया था, डॉक्टरों ने कह दिया था कि उनका पीलिया बिगड़ चुका है. हालांकि विज्ञान के इस युग में,
जहाँ चिकित्सा विज्ञान इतना उन्नत हो चुका है, ऐसे में पीलिया से किसी कि मौत होना थोड़ा चौंकाता भी है. लेकिन इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात उनकी
अंतिम यात्रा में ये हुई कि उनके अंतिम संस्कार में होने वाले छोटे-छोटे क्रियाकलापों के लिए बढ़-चढ़ कर बोलियां लगाई गई, जैसे किसी की मौत न हुई हो,
कोई नीलामी चल रही हो.
अग्नि संस्कार देने की बोली;1 करोड़ 94 लाख रुपए
सिक्के उछाल की बोली: सोना, चांदी 21 लाख रुपए
गुलाल उछाल की बोली: 41 लाख रुपए
मुहपति की बोली: 21 लाख 94 हजार 194 रुपए
बायां कंधा लगाने की बोली: 32 लाख रुपए
दायां कंधा लगाने की बोली: 21 लाख 21 हजार 111 रुपए
मुनि तरुण सागर के अंतिम संस्कार में इस प्रकार बोली लगाए जाने के कारण सोशल मीडिया पर जैन समाज की कड़ी आलोचना हुई है,
इस तरह बोलियां लगाने से जैन समुदाय के कुछ गरीब लोग, जो मुनि तरुण सागर के भक्त थे, भी नाराज़ हैं,
क्योंकि इस तरह उन्हें अपने मुनि पर फूल चढ़ाना भी नसीब नहीं हो पाया, सारा मौका जैन समुदाय के अमीर तबके को मिला.
वहीं जैन समाज के कुछ लोग इसे प्रथा का हिस्सा बता रहा है. जैन धर्म को करीब से जानने वाले लोगों का कहना है कि सिर्फ अंतिम संस्कार ही नहीं बल्कि
जैन संतों के जीवन के हर चरण पर समाज जन इस तरह से बोली लगाकर सामाजिक कार्यों में अपना अंश दान देते हैं
फिर चाहे वो इकट्ठा किए गए पैसे से मंदिर निर्माण करवाना हो या कोई और काम संतों की अगुवाई में उस पैसे का उपयोग होता है.
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