RE: रक्षा-बंधन का पर्व कितना पवित्र?

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रक्षा-बंधन का पर्व कितना पवित्र?

in hindi •  6 years ago 

आज के समय में जहा हर कोई सिर्फ फायदे के लिए ही एक दुसरे का साथ दे रहा है ऐसे समय में हमारे रीती रिवाज और त्यौहार ही है जो हम सब को आपस में बांधे हुए है
और रही बात रक्षाबंधन की तो ये रक्षाबंधन ही है जो भाई बहिन के प्यार को मजबूत बना रहा है
भाई बहिन की रक्षा का वचन देता है इस का मतलब ये नही की लडकिया कमजोर है
बलकी इस वचन का मतलब ये है की
जब भी कोई मुसीबत आएगी और तुम्हारा साथ देने वाला कोई भी नही होगा तब भी तुम्हारा साथ में हमेशा दूंगा
.
हमारे जीवन काल में बहुत सी ऐसी सम्स्य्ये है जो हम स्वेम हल नही कर सकते हमे किसी न किसी की मदद लेनी ही पड़ती ही
ऐसे में अगर भाई साथ देने का वादा कर रहा है तो इस में क्या गलत है
और इस में लडकियों के कमजोर होने की बात कहा है
इस से ज्यादा पवित्र कोई रिश्ता नही
और आप क्या चाहते है
रक्षाबंधन नही मानना चाहिए
क्यों ,,,,,,,,,?

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जब भी कोई मुसीबत आएगी और तुम्हारा साथ देने वाला कोई भी नही होगा तब भी तुम्हारा साथ में हमेशा दूंगा

क्या आपने कभी गौर किया है कि यह वचन केवल एक पक्षीय बाध्यता है? अगर निष्पक्षता होती तो यह बात दोनों पर लागू होती। यही इस बात का द्योतक है कि एक पक्ष को कमजोर और दुसरे को ताकतवर आँका गया है।

ऐसे में अगर भाई साथ देने का वादा कर रहा है तो इस में क्या गलत है

असल में, भाई स्वेच्छा से ऐसा कोई वादा नहीं करता बल्कि यह सामाजिक दबाव और कंडीशनिंग का नतीजा है जो इस पर्व की देन है। सतही नैतिकता को देखकर इसमें कोई बुराई प्रतीत नहीं होती है लेकिन किसी को भी किसी के लिए बाध्य करना मुझे उचित मालूम नहीं पड़ता। कोई भी बंधन हमेशा इंसान को कमजोर बनाता है और जीवन के उच्चतम लक्ष्य की ओर यात्रा में बाधा बनता है।

इस में लडकियों के कमजोर होने की बात कहा है

आपकी इस मासूमियत पर मुझे अचरज होता है। "रक्षा" सदा कमजोर की ही की जाती है और शक्तिशाली ही किसी की रक्षा करने में सक्षम होता है। महिलाओं की कमजोरी तो इस पर्व की भावना में अन्तर्निहित है।

रक्षाबंधन नही मानना चाहिए
क्यों

जिस रूप में यह आज मनाया जा रहा है, मैं उसके खिलाफ हूँ। यह त्यौहार महिलाओं में शनै: शनैः हीनता और उसके कमजोर होने की भावना को अंतरतम अचेतन में प्रगाढ़ करता है। उसे अपनी निर्बलता का एहसास करवाता है। शास्वत प्रेम की ही तरह, भाई-बहन का प्रेम भी किसी मजबूरी से उत्पन्न न होकर निस्वार्थ होना चाहिए। स्त्रियों की कमजोरी को सामाजिक स्वीकृति प्रदान कर उसे मजबूर नहीं बनाना चाहिए। और भी बातें हैं जो आप मेरी पोस्ट को ध्यान से पढेंगे तो शायद स्पष्ट हो पाए।