हिन्दू धर्म की महत्वपूर्ण जानकारी
👉 कौन है नीलकंठ महादेव ?
👉 श्रावण मास में भी क्यों मनाते है शिवरात्री ?
👉शिवलिंग पर पूरे महीने मन्दिरो मे कलश से जल क्यों चढता है ?
श्रावण मास
अर्थात् सावन का महीना
शिव रात्रि और सावन
आइये जाने इसका महत्व
सावन का महीना पूरी मानव जाति के लिए महत्वपूर्ण है यही वह महीना है जिसमें समुद्र मंथन शुरू हुआ और 14 बहुमूल्य रत्न निकले
परंतु सबसे पहले ही हलाहल विश निकल आया
विश इतना प्रभावी था कि उसकी दुर्गंध तुरंत ही फैलकर सम्पूर्ण सृष्टि को विनाशकारी ज्वाला मे स्वतः ही घेरने लगी।
तब देव और दानव उससे बचने को इधर उधर भागते भागते पहले विष्णु, फिर बृह्मा, के पास गये उन्होंने कहा कि इसे सहन करने की शक्ति हमारे अन्दर नहीं है
तब सभी साधना में लीन बैठे भोलेनाथ के समीप पहुँचे और बोले...
त्राहीमाम् त्राहीमाम् त्राहीमाम्
भोले नाथ इस विष के प्रभाव से सम्पूर्ण सृष्टि को बचाईये इस विष के प्रभाव से कुछ नहीं बचेगा तब भगवान शिव ने कहा कि ये विष अत्यंत विषैला है इसे मै भी गृहण नहीं कर सकता
परन्तु एक उपाय है मै इसे अपने कंठ मे रोक सकता हूँ कंठ से नीचे नहीं ले जा सकता
तब सभी ने प्रार्थना की कि हे प्रभु कुछ भी करके शीघ्र इसके प्रभाव से सृष्टि को मुक्त करिये ।
तब भगवान शंकर ने विष को शंख मे भरकर पी लिया और कंठ मे ही रोक लिया परंतु विष की ज्वाला से उनका कंठ नीला पड़ने लगा और वो इधर उधर बैचैन होकर घूमने लगे
तब वो
मणिकूट पर्वत पर चले गये परन्तु अत्यंत ही तड़पने लगे
(मणिकूट पर्वत पर ही वह स्थान है जिसे आज नीलकंठ के नाम से जाना जाता है)
वहाँ पर उन्हे एक बूटी मिली जिसके सेवन से वो विष की तीक्ष्ण गर्मी के साथ साथ खुद की सुधबुध भी भूलकर अर्ध बेहोशी की हालत में पहुँच गये।
(उस बूटी को वर्तमान मे भांग कहते है जिसमें भगवान शंकर को भी बेहोश करने की क्षमता है अतः जनमानस को इसके सेवन से दूर ही रहना चाहिए क्योंकि ये बूटी सीधा दिमाग पर असर करके मनुष्य को पागल कर देती है और हाँ
माता पार्वती ने कभी भी भगवान शंकर को भांग घोटकर नहीं पिलाई ये भ्रांति धर्म का दुष्प्रचार करने हेतु फैलाई गयी है
शंकर ने जीवन में सिर्फ एक बार जगत कल्याण हेतु विष के ताप से बचने को भांग का सेवन किया था)
भगवान शिव की ऐसी दशा देखकर समस्त देवतागण अत्यंत चिंतित हो उठे और भगवान शिव को होश मे लाने हेतु
लगातार उनपर जल चढ़ाने लगे
पूरे महीने लगातार जल चढाने से श्रावण मास की चतुर्दशी को भगवान शिव को विष की ताप से कुछ शान्ति मिली और वे पुनः चेतन अवस्था को लौट आए।
तब से प्रत्येक वर्ष श्रावण मास के पूरे महीने मन्दिरो मे शिवलिंग के ऊपर कलश से लगातार जल चढाया जाता है और इस मास की चतुर्दशी को शिवरात्री के त्योहार के रूप में मनाते है