आग्रा एक ऐतिहासिक नगर है इतिहास में आग्रा का प्रथम उल्लेख महाभारत के समय में मिलता है कहा जाता है कि प्राचीन काल में यह एक बहुत बड़ा जंगल था, जिसे राजा उग्रसेन ने साफ करवाया था राजा उग्रसेन के पिता थे उन्होंने इस शहर का नाम अपने नाम पर ही उग्रसेन रखा था बाद में इसे अग्रबाण या के नाम से जाना जाने लगा कुछ लोगों का यह भी कहना है कि इससे पहले आरे गृह के नाम से जाना जाता था और बाद में ये आग्रा के नाम से जाना जाने लगा ये भी कहा जाता है कि इस नगर को सबसे पहले आग्रा का नाम ने दिया था जो कि एक भूगोलविद थे और अपने विश्व भ्रमण के दौरान यहाँ आए थे आग्रा के इस प्राचीन इतिहास को पूर्ण रूप से प्रमाणित तो नहीं माना जा सकता, लेकिन कुछ अनुमानों और तथ्यों के आधार पर इसकी पुष्टि की जा सकती है प्रामाणिक तथ्यों के आधार पर आग्रा की नींव लोदी वंश के दूसरे शासक सिकंदर शाह लोदी ने पंद्रह से चार में रखी थी सिकंदर शाह लोदी दिल्ली के सुल्तान बहलोल खान लोधी का पुत्र था चौदह सौ नवासी में अपने पिता की मृत्यु के बाद वो लोधी वंश का दूसरा शासक बना और चौदह सौ नवासी से पंद्रह सौ सत्रह तक वो दिल्ली का सुल्तान बना रहा लोधी ने
ग्वालियर का किला हासिल करने की कोशीश की और उसने पांच बार ग्वालियर पर आक्रमण भी किए लेकिन हर बार उसे ग्वालियर के महाराजा मान सिंह से हार का ही सामना करना पड़ा इसके बावजूद ग्वालियर को हासिल करने की उसकी महत्वाकांक्षा इतनी अधिक थी कि उसने ग्वालियर से पहले छावनी बनाने का निर्णय किया ये छावनी आज के आग्रा के पास ही बनाई गई थी उसने इस स्थान को दिल्ली के बाद भारत की दूसरी राजधानी के तौर पर विकसित करना शुरू कर दिया क्योंकि दिल्ली से ग्वालियर जाने में बहुत समय लगता था सिकंदर लोधी के समय में इस स्थान को भारत काशिराज के नाम से भी जाना जाने लगा था कुछ समय बाद सिकंदर लोदी ने एक बार फिर ग्वालियर पर आक्रमण किया लेकिन इस बार भी उसे हार का सामना करना पड़ा पंद्रह सौ सत्रह में सिकंदर लोदी की मृत्यु हो गई और दिल्ली की सल्तनत सिकंदर लोदी के पुत्र इब्राहिम लोदी के पास आ गई इब्राहिम लोधी ने पंद्रह सौ सात से पंद्रह सौ छब्बीस तक दिल्ली पर राज़ किया पिता की मृत्यु के बाद इब्राहिम लोदी ने भी ग्वालियर पर कब्जा करना चाहा और जिसमें वो कामयाब भी रहा और बिना किसी युद्ध के राजा मान सिंह ने इब्राहिम लोधी की अधीनता स्वीकार कर
ली इब्राहिम लोधी की मृत्यु के बाद भारत में मुगलों का शासन शुरू हुआ और आग्रा मुगलों को भी खूब भाया और उन्होंने आग्रा को अपनी राजधानी भी बना लिया मुगलों ने इस शहर में कई ऐतिहासिक इमारतों का निर्माण करवाया हालांकि कुछ समय तक यह शहर हिंदू राजाओं के अधीन भी रहा, लेकिन मुगलों ने फिर इसे हासिल कर लिया पंद्रह सौ छब्बीस से पंद्रह सौ इकहत्तर तक आग्रा मुगलों की राजधानी रहा पंद्रह सौ इकहत्तर से पंद्रह सौ पचासी तक मुगलों ने फतेहपुरसीकरी को भी अपनी राजधानी बनाया और वहाँ ऐतिहासिक किले का निर्माण करवाया इसके बाद पंद्रह सौ पचासी से पंद्रह सौ अट्ठानवे तक मुगलों ने लाहौर को अपनी राजधानी बनाया लाहौर के बाद एक बार फिर आग्रा को पंद्रह सौ अट्ठानवे से सोलह सौ अड़तालीस तक मुगलों की राजधानी के रूप में जाना जाने लगा सोलह सौ अड़तालीस के बाद मुगलों ने अपनी राजधानी दिल्ली बनाई जो कि अठारह सौ सत्तावन तक मुगल साम्राज्य के अंत तक रही इसके बाद भारत में अंग्रेजों का शासन लागू हो गया बाद में अंग्रेजों द्वारा भी इस शहर में एक प्रेज़िडेन्सी बनवाई गई और उन्नीस सौ सैंतालीस के बाद यह शहर भारत के संविधान के अधीन हो गया दोस्तों,
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