Hello Steamians,
I hope you all are well and healthy.
Stay in your homes and be safe, enjoy your life.
"सांस"
कुछ नया कर गुजरने की ललक में ना जाने क्या क्या खो दिया......
2 जी 3 जी 4 जी 5 जी के पाने के लिए....
कुदरत को भी पीछे छोड़ दिया.....
लहराती हरियाली से क्या खता हुई ......
उसे भी कंकरीतों में चुन दिया.....
तड़प रहे हैं जिस सांस के लिए ......
उसको तो गगन चुंबी इमारतों में कब का खो दिया...
ना पेड़ ही रहे ना वो ठंडी हवा के झोंके ....
ना जाने क्यों अब तो हवा भी नाराज है जो आग बरसती है.....
एक सुकून की सांस के लिए ये दुनिया तरसती है.....
कहना बुजुर्गो का अब पता चलता है......
अगर हरियाली को काटोगे तो
ऑक्सीजन कहाँ से लाओगे....
लगता है की पहले ही दुनिया अच्छी थी ......
अरमान कम पर सांसे तो सच्ची थी......
जिन सांसों के लिए किया ये बखेड़ा हमने....
वो भी नही मिल पा रही हैं....
असली तो असली नकली के लिए भी ये दुनिया तड़पती नजर आ रही है....
एक डरावना सा मंजर डरे सहमे से लोग हैं.....
ना जाने नए नए ये कैसे रोग है....
हे ईश्वर अब तो आप ही कुछ कृपा कर दो....
हम इंसानों की भूल को अब तो माफ कर दो....
Enjoy the poetry
I hope you like it.
Have a good day.
(मेरे मित्र का एक छोटा सा प्रयास)
Good
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Me encantó tu poesía, me encantó porque está basada en la realidad que estamos viviendo.
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