✨ छठ महापर्व के बारे में
छठ का पर्व कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष के छठवीं तिथि को मनाया जाता है। यह चार दिनों का व्रत होता है जो काफी कठिन होता है। पहले दिन नहाय–खाय, दूसरे दिन खरना होता है। तीसरे दिन शाम को अस्त होते सूर्य को अर्घ्य (जल अर्पण) और चौथे दिन उगते सूरज को अर्घ्य दिया जाता है। राजा प्रियंवद ने अपने मृत पुत्र को जीवित करने के लिए माता षष्ठी की पूजा की थी और वह पूजन सफल हुआ था। सूर्य पुत्र कर्ण ने भी सूर्य की पूजा की थी एवं द्रौपदी ने भी अपने परिवार के सुख शांति के लिए सूर्य देव की पूजा की थी। इन सब घटनाओं का छठ पर्व मनाने में योगदान माना जाता है। |
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सुबह के समय मैं और मुहल्ले के और भी कुछ लोग घाट पर साफ सफाई के लिए गए थे। गाय के गोबर से हमने वहां की पुताई की और एक दो लोगों की घट बनाने में मदद की साथ तालाब में खिले जलकुंभी के सुंदर फूल देखकर मेरे अंदर का फोटोग्राफर जाग गया तो मैने कुछ तस्वीरें भी ली। फिर हम वहां से वापस आ गए। छोटे बच्चों में ज्यादा उत्साह था क्योंकि रास्ते में बहुत से बच्चे पटाखे फोड़ रहे थे। मेरे घर में मेरी चाची जी ने व्रत रखा था। हालांकि मेरी दोनों चाची जी और मां ने भी व्रत रखा है लेकिन अभी सभी लोग घर पर इकट्ठा नहीं हुए हैं। तो सभी अपने अपने यहां व्रत कर रहे हैं।
🌄संध्या-अर्घ्य का समय |
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शाम के समय करीब चार बजे बहन ने मुझे आवाज दी क्योंकि मैं सोया हुआ था। उठने के बाद मैने अपने कपड़े इस्त्री किए फिर पहनने के बाद मैने अपने सिर पर फल और पूजा सामग्री का दौरा (टोकरी) उठाई और मेरे भाई ने गन्ने का बंडल लिया और चल दिए छठ घाट की तरफ। वहां पहुंचने पर देखा कुछ लोग पहले ही आ चुके हैं। हमने अपनी पूजा सामग्री घाट पर बनी वेदियों पर रख दिया। कुछ समय में ही चारों तरफ गीत और बाजे के स्वर से वातावरण गूंज गया। 5:09 बजे सूर्यास्त का समय था तब तक लोगों ने सूर्य को अर्घ्य दिया। बच्चे पटाखे जलाने और फुलझड़ी से खेलने में व्यस्त थे। पटाखों की आवाज से कान थरथरा जा रहे थे। हमने कुछ फोटो ली और फिर वापस आ गए।
🪔 कोशी भराई |
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घर आने के बाद कोशी भरने की प्रक्रिया शुरू हुई। मुहल्ले की औरतों को बुलावा दे दिया गया था। कुछ समय सब माहिलाएं अपने काम से मुक्त होकर हमारे घर आईं। फिर चाची ने चौका बनाने के बाद पूजा शुरू की। हमने भी जमीन पर सिर झुका कर प्रणाम किया। गीत वगैरा गए गए। फिर हमने खाना खाया और कुछ देर तक लूडो खेला। फिर जल्दी सो गए क्योंकि सुबह जल्दी उठना भी था। सूर्योदय होने से कम से कम दो घंटे पहले जाना होता है।
🌅 उगते सूर्य को अर्घ्य का समय |
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सुबह 4 बजे के समय मैं उठ गया और फ्रेश होने के बाद नहाने चला गया। हल्की हल्की ठंड लग रही थी जिसे हमारे यहां गुलाबी ठंड भी कहते हैं। फिर तैयार होकर सारा पूजा सामग्री लेकर घाट की तरफ चल दिए। भोर के समय में घाट पर दीप ही दीप जल थे थे। बिल्कुल तारों की तरह लगने वाले दीप बहुत खूबसूरत लग रहे थे। सुबह के समय लोग थोड़ा जल्दी आ गए थे और पूजा का समय पर्याप्त मिल गया था। चारो तरफ आतिशबाजी चल रही थी। एक रॉकेट गलती से पूजा करती महिलाओं के बीच आकर गिरा। हालांकि किसी को कोई क्षति नहीं हुई। पटाखे बजाने वालों को हिदायत दी गई फिर पूजा आगे बढ़ी। मैने और मेरे भाई ने अर्घ्य दिया फिर मेरी बहनों ने भी अर्घ्य दिया। सूर्य निकल चुका था और महिलाएं आपस में भी अपने से बड़ी महिलाओं के पैर छूकर आशीर्वाद ले रही थी। पूजा समाप्त कर हम घर की ओर वापस मुड़ गए। घर आने के बाद मैं लेटा हुआ हूँ और यह पोस्ट लिख रहा हूँ जो कि पूर्ण हुई।
लेखक | |
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शीर्षक | The Diary Game- छठ पर्व–विशेष |
दिनांक | 08 नवंबर 2024 |
योगदान | 10% to @hindwhale |
छठ पूजा के महापर्व पर ढेर सारी शुभकामनाएँ पवन भाई
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Congratulations! Your post has been upvoted through @steemcurator03. Good post here should be..Downvoting a post can decrease pending rewards and make it less visible. Common reasons:
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