माता कृष्णावंती महाविद्यालय, पदमपुर, श्रीगंगानगर, राजस्थान गीना देवी शोध संस्थान, भिवानी तथा इण्डो यूरोपियन लिटरेरी डिस्कॉर्स, यूक्रेन के संयुक्त तत्त्वावधान में दिनाँक 25 दिसंबर को एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी का विषय था “वैश्विक पर्यावरण प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन-वैदिक समाधान“।
इस संगोष्ठी में मुख्य अतिथि प्रो.डॉ. एम एम सक्सेना, कुलपति, टाँटिया विश्वविद्यालय, श्री गंगानगर ने संबोधित करते हुए कहा कि हमारी प्राचीन साँस्कृतिक विरासत और आधुनिक विकास के नाम पर जो होड़ चल रही है,वह केवल अहं की तुष्टि है,जिसका कहीं कोई अंत नहीं है। आज शहरीकरण जिस गति से हो रहा है उसे देखकर यह अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है कि हम अपनी जड़ों से दूर होते जा रहे हैं। शहर की ओर भागने से बेहतर है कि हम अपने मूल स्थान को ही विकसित करें और पर्यावरण संतुलन में अपनी भूमिका निश्चित करें। कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ.मोक्षराज,पूर्व साँस्कृतिक राजनयिक, यू.एस.ए.ने अपने व्याख्यान में कहा कि यज्ञ, दान व तप भारतीय संस्कृति के प्रमुख आधार हैं। इनमें सबसे प्रमुख है, यज्ञ ! यज्ञ में ही देवपूजा, संगतिकरण व दान के भाव जुड़े हुए हैं । यज्ञ तप भी है । श्रेष्ठ कार्यों में संलग्न रहना पतित ना होना तथा चित्त को संतुलित रखना ही तप है ।
उक्त विचार अमेरिका स्थित भारतीय राजदूतावास में प्रथम सांस्कृतिक राजनायिक एवं भारतीय संस्कृति शिक्षक रहे डॉ. मोक्षराज ने माता कृष्णावंती महाविद्यालय, पदमपुर में आयोजित एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में व्यक्त किए । उन्होंने कहा कि कुछ लोग भारत की संस्कृति को नष्ट करने के षड्यंत्र में लगे होने से यज्ञ का विरोध करते हैं तथा इसके विपरीत अनेक कुतर्क गढ़ते हैं । यज्ञ एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है । यज्ञ केवल पर्यावरण के लिए ही हितकारी नहीं है, बल्कि मनुष्य के तन, मन और आत्मा को बल देने वाला दिव्य अनुसंधान भी है।
डॉ. मोक्षराज
उल्लेखनीय है कि डॉ. मोक्षराज 3 वर्ष तक अमेरिका में योग, हिंदी, संस्कृत, वेद व यज्ञ का प्रचार कर हाल ही में भारत लौटे हैं । उन्होंने वहाँ 25 देशों के लोगों को योग 17 देशों के लोगों को हिन्दी तथा अनेक भारतीय मूल के लोगों को वेद एवं यज्ञ की शिक्षा की अलख जगाई है । मुख्य वक्ता एवं अतिथि प्रोफेसर डॉ संजीव कुमार बंसल ने जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण के चौंकाने वाले आँकड़े प्रस्तुत करते हुए तथ्यात्मक और प्रभावशाली व्याख्यान दिया। अंतिम सत्र की अध्यक्षता करते हुए पूर्व प्राचार्य डॉ.आर सी श्रीवास्तव ने वेदों की महत्ता के साथ साथ आरण्यक एवं उपनिषदों के उद्धरणों द्वारा विषयवस्तु की विशद् व्याख्या की।
महाविद्यालय के प्राचार्य एवं कार्यक्रम आयोजक डॉ. हनुमान प्रसाद ने बताया कि यह संगोष्ठी दो सत्रों में आयोजित की गई। यूक्रेन से राकेश शंकर, भिवानी से डॉ. नरेश सिहाग, बाँसवाड़ा से डॉ. सहदेव पारीक, सूरतगढ से शोधार्थी हर्ष भारती, अर्पणा अरोड़ा ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन डॉ. विनोद कुमार शर्मा ने किया।
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Thanks for covering some of such meetings. It's often gets neglected and I appreciate your work on the coverage of this.
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