कौओं से हमारे अनूठे रिश्ते को मनाने का उत्सव है घुघुतिया
एक ओर जहाँ पूरे भारतवर्ष में प्रकृति और कृषि को जोड़ने वाला यह पवित्र पर्व मकर संक्रांति मनाया गया वहीं अपने भारत मे एक राज्य ऐसा भी है जहाँ यह पर्व एक अनूठे रिश्ते को बरकरार किये हुए है। जी हाँ मकर संक्रांति पर उत्तराखण्ड में यह पर्व कृषि से ज्यादा बच्चों और कौओं की मैत्री के लिए मशहूर है, जो इसे एक पर्व के स्थान पर एक लोकउत्सव बना देता है।
उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊँ में मकर सक्रांति पर घुघुतित्यार/घुघुतिया के नाम से त्यौहार मनाया जाता है | यह कुमाऊँ का सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है और यह एक स्थानीय पर्व होने के साथ साथ स्थानीय लोक उत्सव भी है क्योंकि इस दिन एक विशेष प्रकार का व्यञ्जन घुघुत बनाया जाता है | इस त्यौहार की अपनी अलग पहचान है | इस त्यौहार को उत्तराखण्ड में “उत्तरायणी” के नाम से मनाया जाता है एवम् गढ़वाल में इसे पूर्वी उत्तरप्रदेश की तरह “खिचड़ी सक्रांति” के नाम से मनाया जाता है | विश्व में पशु पक्षियों से सम्बंधित कई त्यौहार मनाये जाते हैं पर कौओं को विशेष व्यञ्जन खिलाने का यह अनोखा त्यौहार उत्तराखण्ड के कुमाऊँ के अलावा शायद कहीं नहीं मनाया जाता है |
यह त्यौहार विशेष कर बच्चो और कौओ के लिए बना है | इस त्यौहार के दिन सभी बच्चे सुबह सुबह उठकर कौओ को बुलाकर कई तरह के पकवान खिलाते है और कहते है :-
“काले कौआ काले घुघुती माला खाले ,
लै कौआ बड़ा , आपु सबुनी के दिए सुनक ठुल ठुल घड़ा ,
रखिये सबुने कै निरोग , सुख समृधि दिए रोज रोज।”
इसका अर्थ है काले कौआ आकर घुघुती(इस दिन के लिए बनाया गया पकवान) , से बनी माला खाले, ले कौए खाने को बड़े(उड़द का बना हुआ पकवान) खाले और सभी को सोने के बड़े बड़े घड़े दे , सभी लोगो को स्वस्थ रख और समृधि दे।
घुघुतिया त्यौहार मनाने के पीछे एक लोकप्रिय लोककथा है | यह लोककथा कुछ इस प्रकार है | जब कुमाऊँ में चन्द्र वंश के राजा राज करते थे, तो उस समय राजा कल्याण चंद की कोई संतान नहीं थी, संतान ना होने के कारण उनका कोई उत्तराधिकारी नहीं था | उनका मंत्री सोचता था कि राजा के मरने के बाद राज्य उसे ही मिलेगा | एक बार राजा कल्याण चंद अपनी पत्नी के साथ बागनाथ मंदिर के दर्शन के लिए गए और संतान प्राप्ति के लिए मनोकामना करी और कुछ समय बाद राजा कल्याण चंद को संतान का सुख प्राप्त हो गया , जिसका नाम “निर्भय चंद” पड़ा।
Bagnaath Temple
Flag of Chand Dynasty
राजा की पत्नी अपने पुत्र को प्यार से “घुघती” के नाम से पुकारा करती थी और अपने पुत्र के गले में “मोती की माला” बाँधकर रखती थी | मोती की माला से निर्भय का विशेष लगाव हो गया था इसलिए उनका पुत्र जब कभी भी किसी वस्तु की हठ करता तो रानी अपने पुत्र निर्भय को यह कहती थी कि “हठ ना कर नहीं तो तेरी माला कौओ को दे दूंगी” | उसको डराने के लिए रानी “काले कौआ काले घुघुती माला खाले” बोलकर डराती थी | ऐसा करने से कौए आ जाते थे और रानी कौओ को खाने के लिए कुछ दे दिया करती थी | धीरे धीरे निर्भय और कौओ की दोस्ती हो गयी | दूसरी तरफ मंत्री घुघुती(निर्भय) को मार कर राज पाठ हडपने की उम्मीद लगाये रहता था ताकि उसे राजगद्दी प्राप्त हो सके |
Corvus macrorhynchos
एक दिन मंत्री ने अपने साथियो के साथ मिलकर षड्यंत्र रचा | घुघुती (निर्भय) जब खेल रहा था तो मंत्री उसे चुप चाप उठा कर ले गया | जब मंत्री घुघुती (निर्भय) को जंगल की ओर ले जा रहा था तो एक कौए ने मंत्री और घुघुती(निर्भय) को देख लिया और जोर जोर से काँव-काँव करने लगा | यह शोर सुनकर घुघुती रोने लगा और अपनी मोती की माला को निकालकर लहराने लगा, उस कौए ने वह माला घुघुती(निर्भय) से छीन ली | उस कौए की आवाज़ को सुनकर उसके साथी कौए भी इक्कठा हो गए एवम् मंत्री और उसके साथियो पर नुकीली चोंचो से हमला कर दिया | हमले से घायल होकर मंत्री और उसके साथी मौका देख कर जंगल से भाग निकले |
राजमहल में सभी घुघुती(निर्भय) की अनूपस्थिति से परेशान थे | तभी एक कौए ने घुघुती(निर्भय) की मोती की माला रानी के सामने फेंक दी। यह देख कर सभी को संदेह हुआ कि कौए को घुघुती(निर्भय) के बारे में पता है इसलिए सभी कौए के पीछे जंगल में जा पहुँचे और उन्हें पेड़ के निचे निर्भय दिखाई दिया | उसके बाद रानी ने अपने पुत्र को गले लगाया और राज महल ले गयी। जब राजा को यह पता चला कि उसके पुत्र को मारने के लिए मंत्री ने षड्यंत्र रचा है तो राजा ने मंत्री और उसके साथियों को मृत्यु दंड दे दिया।
घुघुती के मिल जाने पर रानी ने बहुत सारे पकवान बनाये और घुघुती से कहा कि अपने दोस्त कौओं को भी बुलाकर खिला दे और यह कथा धीरे धीरे सारे कुमाऊँ में फैल गयी और इस त्यौहार ने बच्चो के त्यौहार का रूप ले लिया | तब से हर साल इस दिन धूम धाम से इस त्यौहार को मनाया जाता है | इस दिन मीठे आटे से जिसे “घुघुत” भी कहा जाता है, उसकी माला बनाकर बच्चों द्वारा कौओं को खिलाई जाती है।
घुघुती त्यौहार आज भी उत्तराखण्ड के कई हिस्सों में विशेष उल्लास से मनाया जाता है,मगर अब धीरे-धीरे इनकी पहचान खोने लगी है। उन्हीं के साथ विलुप्ति के कगार पर पहुँच गए हैं वे कौए जो इस त्यौहार के विशेष मेहमान होते हैं। उम्मीद करते हैं कि इस लेख के बाद आप न सिर्फ उत्तराखण्ड का बरसों पुराना यह त्यौहार जिन्दा रखने की कोशिश करेंगे बल्कि कौओं की विलुप्ति की चर्चा और संरक्षण के लिए भी आगे आएंगे। वरना प्रकृति का यह सफाई कर्मचारी इन कहानियों में ही गुम होकर रह जायेगा।
आप सभी को मैत्री के इस अनूठे रिश्ते घुघुतिया की हार्दिक शुभकामनाएँ।
लै कावा भात, में कै दे सुनक थात!
लै कावा लगड़, में कै दे भैबैणों दगड़!
लै कावा बौड़ में, कै दे सुनौक घ्वड़!
लै कावा क्वे, में कै दे भली भली ज्वे!
By Environment India 🙏
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