मानव शरीर पांच महाविभूतियों से बना है जैसे की हवा,जल,अगनी,आकाश और मिट्टी। मानव जीवन बिस दृस्य और अदृस्य पदार्थो से बना है। लेकिन फिर भी सभी के कार्य और स्वभाव अलग अलग प्रतीत होते है इसका कारण है सृस्टी के तीन गुण समस,रजस और सत्व। समस का अर्थ होता है अंधकार जैसे पशु पछी जानवर जीवन जिते है बिना अच्छे बुरे का विचार किये। और सत्व का अर्थ होता है ज्ञान हर परिस्थिति का अच्छे से विचार करना अच्छे काम करना उसे सात्विक जीवन कहते है और रजस यह गुण इन दोनों के बिच में रहता है ज्ञान तो है पर अहंकार जैसी मनोस्ति से बँधा रहता है इन तीनो गुणों के अधिक या कम मात्रा के मेल से मानव का स्वभाव बनता है
मानव केवल पांच पदार्थ,पांच ज्ञानेद्रियाँ,पांच कर्मेन्द्रिय पांच महाविभूतियों नहीं मानव को चलने फिरने के लिए शक्ति की आवश्य्कता होती है और उस शक्ति को चेतना कहते है मानव की चेतना के साथ उन २३ वस्तुवो के मेल का नाम प्रकृति है इन २४ वस्तुओ से बने मानव शरीर में वास करता है परमात्मा का अंस उसे आत्मा कहा गया है जब परमात्मा का अंस प्रकृति नामक शरीर में वास करता है तब मानव जीवित होता है। जिस तरह मानव कपडे का उपयोग करता है उसी तरह आत्मा शरीर का उपयोग करती है। लेकिन आत्मा शरीर नहीं शरीर का नाश किया जा सकता है लेकिन आत्मा का नाश नहीं किया जा सकता।
लेकिन हम अज्ञानता के कारण इसे पहचान नहीं पाते हम सोचते है हम जो है वो केवल शरीर है। हम संसार का अनुभव शरीर से करते है किन्तु अपने आप को आत्मा के रूप में जानना कठिन भी नहीं है क्योकि अंधे भी जीते है गूंगे भी जीते है इससे स्पष्ट है शरीर मनुस्य नहीं जिसकी चेतना चली जाती है ओ भी जीते है इससे यह सिद्ध होता है मानव का चेतन्य तत्व वो भी शरीर नहीं इसी प्रकार जो ये समझता जाता है की मै इन्द्रिया नहीं कर्मेन्द्रिय नहीं विचार नहीं ज्ञान भी मै नहीं वो अंत में अपने आप को आत्मा के रूप में जान लेता है। प्रत्येक आत्मा का प्रथम और अंतिम उद्देस्य यही होता है की वो अपने आप को आत्मा के रूप में जाने जिस तरह कीचड़ में पड़ा मोती चमकता नहीं उसी तरह प्रकृति नामक बने शरीर में आत्मा भूल जाती है की वो परमात्मा का अंस है इसलिए हमें ये मान लेना चाहिए की हम केवल एक आत्मा है। जब तक हम शरीर में रह कर अपने आप को शुद्ध आत्मा के रूप में जान नहीं लेते और जब तक हम अच्छे कार्य नहीं करते बुरे कार्यो का त्याग नहीं करते तब तक हमारी आत्मा जिती और मरती रहेंगे। यही सत्य है जो जन्मा है वो अवस्य मरेगा और जो मरा है वो अवस्य जियेगा इसे हम सांख्ययोग कहते है
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